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"वक्त की आंधी / अवनीश सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर
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− | वक्त की आंधी | + | वक्त की आंधी |
− | ले | + | उड़ा कर |
+ | ले गई मेरा सहारा | ||
− | नम हुई | + | नम हुई जो आँख, |
− | + | मन के बादलों का | |
− | धड़ | + | झुण्ड जैसे |
− | + | धड़ कहीं है | |
+ | पर यहाँ तो | ||
+ | फड़फडाता मुंड जैसे | ||
− | रो | + | रो रही सूखी |
− | + | नदी का | |
+ | अब न कोई है किनारा | ||
− | पांव | + | पांव खुद |
+ | जंजीर जैसे | ||
और मरुथल-सी डगर है | और मरुथल-सी डगर है | ||
− | रिस | + | रिस रही |
− | + | पीड़ा ह्रदय की | |
+ | किन्तु दुनिया बेख़बर है | ||
− | सब तरफ बैसाखियाँ हैं | + | सब तरफ |
− | कौन दे किसको सहारा | + | बैसाखियाँ हैं |
+ | कौन दे किसको सहारा | ||
− | सोच | + | सोच- |
− | रह | + | मजहब, जातियों-सी |
− | जी | + | रह गई है मात्र बंटकर |
− | साँस वो भी डर- | + | जी रही है |
+ | किस्त में हर साँस | ||
+ | वो भी डर-संभल कर | ||
− | सुर्खियाँ | + | सुर्खियाँ बेजान-सी हैं |
− | मर गया | + | मर गया |
+ | जैसे लवारा? | ||
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14:06, 18 मार्च 2012 के समय का अवतरण
वक्त की आंधी
उड़ा कर
ले गई मेरा सहारा
नम हुई जो आँख,
मन के बादलों का
झुण्ड जैसे
धड़ कहीं है
पर यहाँ तो
फड़फडाता मुंड जैसे
रो रही सूखी
नदी का
अब न कोई है किनारा
पांव खुद
जंजीर जैसे
और मरुथल-सी डगर है
रिस रही
पीड़ा ह्रदय की
किन्तु दुनिया बेख़बर है
सब तरफ
बैसाखियाँ हैं
कौन दे किसको सहारा
सोच-
मजहब, जातियों-सी
रह गई है मात्र बंटकर
जी रही है
किस्त में हर साँस
वो भी डर-संभल कर
सुर्खियाँ बेजान-सी हैं
मर गया
जैसे लवारा?