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"आईना / रेशमा हिंगोरानी" के अवतरणों में अंतर

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शम’अ, आईना लिए घूम रहा है कोई,
 
शम’अ, आईना लिए घूम रहा है कोई,
 
चलूं, अपना मुझे दीदार हो न जाए कहीं!
 
चलूं, अपना मुझे दीदार हो न जाए कहीं!
 
-रेशमा हिंगोरानी
 
 
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13:47, 2 अक्टूबर 2011 के समय का अवतरण

साँस लेना मेरा दुशवार हो न जाए कहीं,
मौत! तुझसे भी मुझे प्यार हो न जाए कहीं!

कहाँ-कहाँ से मर्ज़ ढूंढ लाई है दुनिया,
कि चारागर, ख़ुद बीमार हो न जाए कहीं!

जुदाई ही रही ता-उम्र नसीबा अपना,
शबे-आख़िर भी यूँ बेकार हो न जाए कहीं!

शम’अ, आईना लिए घूम रहा है कोई,
चलूं, अपना मुझे दीदार हो न जाए कहीं!