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"आंदोलन / मधुप मोहता" के अवतरणों में अंतर
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09:22, 14 मार्च 2020 का अवतरण
मेरी भूख उभर आई है
गड्ढे बन मेरे गालों पर।
मेरी प्यास सिमट आई है
पपड़ी बन सूखे अधरों पर।
मेरा दर्द ढलक आया है,
आंसू बन मेरी अलकों पर।
ओ समाज के ठेकेदारों,
ज्वालामुखी फूट जाएगा
और चलो मत अंगारों पर।
मेरा लहू बिखर जाएगा
नारे बनकर दिवारों पर।
(कनु सान्याल के लिए)