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"प्राण तुम्हारी पदरज़ फूली / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर
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वाक्य अर्थ का हो प्रत्याशी, | वाक्य अर्थ का हो प्रत्याशी, | ||
गीत शब्द का कब अभिलाषी? | गीत शब्द का कब अभिलाषी? | ||
− | अंतर में पराग सी छाई है स्मृतियों की आशा धूली! | + | अंतर में पराग-सी छाई है स्मृतियों की आशा धूली! |
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10:42, 7 नवम्बर 2011 के समय का अवतरण
प्राण तुम्हारी पदरज फूली
मुझको कंचन हुई तुम्हारे चरणों की यह धूली!
आई थी तो जाना भी था -
फिर भी आओगी, दुःख किसका?
एक बार जब दृष्टिकरों के पद चिह्नों की रेखा छू ली!
वाक्य अर्थ का हो प्रत्याशी,
गीत शब्द का कब अभिलाषी?
अंतर में पराग-सी छाई है स्मृतियों की आशा धूली!
प्राण तुम्हारी पदरज फूली!