"ग़म / शिवदीन राम जोशी" के अवतरणों में अंतर
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिवदीन राम जोशी |संग्रह }} <poem> गम में ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
छो |
||
पंक्ति 9: | पंक्ति 9: | ||
कोउ पूछे कहाँ, हमसे बतियां, | कोउ पूछे कहाँ, हमसे बतियां, | ||
हममे गम हैं, हम गम में समाये। | हममे गम हैं, हम गम में समाये। | ||
− | + | गम खा के रहे, गम खा के जिये, | |
गम गीत सदा, गम के हम गाये। | गम गीत सदा, गम के हम गाये। | ||
गम देख खिले, अहा खूब मिले, | गम देख खिले, अहा खूब मिले, | ||
पंक्ति 39: | पंक्ति 39: | ||
गम ताजा है राजा न बासी बुरा, | गम ताजा है राजा न बासी बुरा, | ||
− | गम खाय | + | गम खाय के देखलो मानव जानो। |
गम खा प्रहलाद मरा न जरा, | गम खा प्रहलाद मरा न जरा, | ||
घ्रुव खा के गया गम वो पहिचानो। | घ्रुव खा के गया गम वो पहिचानो। |
07:29, 21 जनवरी 2012 का अवतरण
गम में गमगीन, गमें गम में,
गम में रम के, गम और रमायें।
कोउ पूछे कहाँ, हमसे बतियां,
हममे गम हैं, हम गम में समाये।
गम खा के रहे, गम खा के जिये,
गम गीत सदा, गम के हम गाये।
गम देख खिले, अहा खूब मिले,
शिवदीन गमों से, ना आंसू बहायें।।
&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&
भोर भये, गम खा के रहे,
और शाम की शाम, रहे गम खाये।
दिन बीत गये, गम-खा, गम-खा,
गम खा हमनें, कई बरस गमाये।
जो भी मिला, गम दे के मिला,
गम ले के भला, हम और सरायें।
गम खूब गिरे, गिरते-गिरते,
शिवदीन गमों को, भला करी पायें।।
&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&
गम गामता है, यह बडा गम है,
गम्भीर बना, गम की बलिहारी।
गम मीठा सा, मीठा लगा, गम तो,
गम खा के ये जिन्दगी, खूब गुजारी।
तलाश खुशी की, करी करते,
गम और मिले, मोहे आगे अगारी।
शिवदीन गमों से, मोहब्बत है,
फिर क्यो न रहे, गम में होशियरी।।
&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&
गम ताजा है राजा न बासी बुरा,
गम खाय के देखलो मानव जानो।
गम खा प्रहलाद मरा न जरा,
घ्रुव खा के गया गम वो पहिचानो।
संत सदा गम खाय बने,
वे धारे गरीब नवाज को बानो।
शिवदीन गमों से मिलो तो मिलो,
गम सार सदा कोऊ मानो न मानो।।