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"चरवाहा और भेड़ें / निदा फ़ाज़ली" के अवतरणों में अंतर
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जिन चेहरों से रौशन हैं | जिन चेहरों से रौशन हैं | ||
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इतिहास के दर्पण | इतिहास के दर्पण | ||
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चलती-फिरती धरती पर | चलती-फिरती धरती पर | ||
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वो कैसे होंगे | वो कैसे होंगे | ||
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सूरत का मूरत बन जाना | सूरत का मूरत बन जाना | ||
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बरसों बाद का है अफ़साना | बरसों बाद का है अफ़साना | ||
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पहले तो हम जैसे होंगे | पहले तो हम जैसे होंगे | ||
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मिटटी में दीवारें होंगी | मिटटी में दीवारें होंगी | ||
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लोहे में तलवारें होंगी | लोहे में तलवारें होंगी | ||
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आग, हवा | आग, हवा | ||
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पानी अम्बर में | पानी अम्बर में | ||
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जीतें होंगी | जीतें होंगी | ||
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हारें होंगी | हारें होंगी | ||
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हर युग का इतिहास यही है- | हर युग का इतिहास यही है- | ||
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अपनी-अपनी भेड़ें चुनकर | अपनी-अपनी भेड़ें चुनकर | ||
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जो भी चरवाहा होता है | जो भी चरवाहा होता है | ||
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उसके सर पर नील गगन कि | उसके सर पर नील गगन कि | ||
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रहमत का साया होता है | रहमत का साया होता है | ||
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19:05, 11 अक्टूबर 2020 के समय का अवतरण
जिन चेहरों से रौशन हैं
इतिहास के दर्पण
चलती-फिरती धरती पर
वो कैसे होंगे
सूरत का मूरत बन जाना
बरसों बाद का है अफ़साना
पहले तो हम जैसे होंगे
मिटटी में दीवारें होंगी
लोहे में तलवारें होंगी
आग, हवा
पानी अम्बर में
जीतें होंगी
हारें होंगी
हर युग का इतिहास यही है-
अपनी-अपनी भेड़ें चुनकर
जो भी चरवाहा होता है
उसके सर पर नील गगन कि
रहमत का साया होता है