भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दुष्यंत कुमार / परिचय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKRachnakaarParichay
 
{{KKRachnakaarParichay
 
|रचनाकार=दुष्यंत कुमार
 
|रचनाकार=दुष्यंत कुमार
}}'''दुष्यंत कुमार त्यागी''' ([[१९३३]]-[[१९७७]]) एक हिंदी कवि और ग़ज़लकार थे ।
+
}}
 
<poem>
 
<poem>
 +
[[दुष्यंत कुमार]] बिजनौर के रहने वाले थे ।
  
दुष्यंत कुमार [[उत्तर प्रदेश]] के बिजनौर के रहने वाले थे ।  जिस समय [[दुष्यंत कुमार]] ने साहित्य की दुनिया में अपने कदम रखे उस समय भोपाल के दो प्रगतिशील (तरक्कीपसंद) शायरों ताज भोपाली तथा क़ैफ़ भोपाली का ग़ज़लों की दुनिया पर राज था । हिन्दी में भी उस समय [[अज्ञेय]] तथा गजानन माधव मुक्तिबोध की कठिन कविताओं का बोलबाला था । उस समय आम आदमी के लिए [[नागार्जुन]] तथा धूमिल जैसे कुछ कवि ही बच गए थे । इस समय सिर्फ़ ४२ वर्ष के जीवन में दुष्यंत कुमार ने अपार ख्याति अर्जित की । निदा फ़ाज़ली उनके बारे में लिखते हैं '' "दुष्यंत की नज़र उनके युग की नई पीढ़ी के ग़ुस्से और नाराज़गी से सजी बनी है. यह ग़ुस्सा और नाराज़गी उस अन्याय और राजनीति के कुकर्मो के ख़िलाफ़ नए तेवरों की आवाज़ थी, जो समाज में मध्यवर्गीय झूठेपन की जगह पिछड़े वर्ग की मेहनत और दया की नुमानंदगी करती है. " ''
+
'''[[दुष्यंत कुमार | दुष्यंत कुमार त्यागी]]''' ([[१९३३]]-[[१९७७]]) एक हिंदी कवि और ग़ज़लकार थे ।
  
हिन्दी साहित्याकाश में दुष्यन्त सूर्य की तरह देदीप्यमान हैं| समकालीन हिन्दी कविता विशेषकर हिन्दी गज़ल के क्षेत्र में जो लोकप्रियता दुष्यन्त कुमार को मिली वो दशकों बाद विरले किसी कवि को नसीब होती है| दुष्यन्त एक कालजयी कवि हैं और ऐसे कवि समय काल में परिवर्तन हो जाने के बाद भी प्रासंगिक रहते हैं| दुष्यन्त का लेखन का स्वर सड़क से संसद तक गूँजता है| इस कवि ने आपात काल में बेख़ौफ़ कहा था मत कहो आकाश में कुहरा घना है / यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना ह| इस कवि ने कविता ,गीत ,गज़ल ,काव्य नाटक ,कथा आदि सभी विधाओं में लेखन किया लेकिन गज़लों की अपार लोकप्रियता ने अन्य विधाओं को नेपथ्य में डाल दिया| दुष्यन्त कुमार का जन्म बिजनौर जनपद [[उत्तर प्रदेश]] के ग्राम राजपुर नवादा में 01 सितम्बर 1933 को और निधन भोपाल में 30 दिसम्बर 1975 को हुआ था| इलाहबाद विश्व विद्यालय से शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत कुछ दिन आकाशवाणी भोपाल में असिस्टेंट प्रोड्यूसर रहे बाद में प्रोड्यूसर पद पर ज्वाइन करना था लेकिन तभी हिन्दी साहित्याकाश का यह सूर्य अस्त हो गया| इलाहबाद में [[कमलेश्वर]], मार्कण्डेय और दुष्यन्त की दोस्ती बहुत लोकप्रिय थी वास्तविक जीवन में दुष्यन्त बहुत, सहज और मनमौजी व्यक्ति थे| कथाकार कमलेश्वर बाद में दुष्यन्त के समधी भी हुए| दुष्यन्त का पूरा नाम दुष्यन्त कुमार त्यागी था| प्रारम्भ में दुष्यन्त कुमार परदेशी के नाम से लेखन करते थे|  
+
दुष्यन्त कुमार का जन्म बिजनौर जनपद [[उत्तर प्रदेश]] के ग्राम राजपुर नवादा में 01 सितम्बर [[1933]] को और निधन भोपाल में 30 दिसम्बर 1975 को हुआ था| इलाहबाद विश्व विद्यालय से शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत कुछ दिन आकाशवाणी भोपाल में असिस्टेंट प्रोड्यूसर रहे बाद में प्रोड्यूसर पद पर ज्वाइन करना था लेकिन तभी हिन्दी साहित्याकाश का यह सूर्य अस्त हो गया| इलाहबाद में [[कमलेश्वर]], मार्कण्डेय और दुष्यन्त की दोस्ती बहुत लोकप्रिय थी वास्तविक जीवन में दुष्यन्त बहुत, सहज और मनमौजी व्यक्ति थे| कथाकार [[कमलेश्वर]] बाद में दुष्यन्त के समधी भी हुए| दुष्यन्त का पूरा नाम दुष्यन्त कुमार त्यागी था| प्रारम्भ में [[दुष्यंत कुमार |दुष्यन्त कुमार परदेशी]] के नाम से लेखन करते थे|
 +
 +
जिस समय [[दुष्यंत कुमार]] ने साहित्य की दुनिया में अपने कदम रखे उस समय भोपाल के दो प्रगतिशील (तरक्कीपसंद) शायरों [[ताज भोपाली]] तथा [[क़ैफ़ भोपाली]] का ग़ज़लों की दुनिया पर राज था । हिन्दी में भी उस समय [[अज्ञेय]] तथा [[गजानन माधव मुक्तिबोध]] की कठिन कविताओं का बोलबाला था । उस समय आम आदमी के लिए [[नागार्जुन]] तथा धूमिल जैसे कुछ कवि ही बच गए थे । इस समय सिर्फ़ ४२ वर्ष के जीवन में दुष्यंत कुमार ने अपार ख्याति अर्जित की । [[निदा फ़ाज़ली]] उनके बारे में लिखते हैं
  
कृतियाँ: [[सूर्य का स्वागत / दुष्यंत कुमार]] , [[आवाज़ों के घेरे / दुष्यंत कुमार]] , [[जलते हुए वन का वसंत / दुष्यंत कुमार]] [सभी कविता संग्रह]; [[साये में धूप / दुष्यंत कुमार]] [गज़ल संग्रह] [[एक कंठ विषपायी / दुष्यंत कुमार]] [काव्य नाटक] आदि दुष्यन्त की प्रमुख कृतियाँ हैं|
+
'''"दुष्यंत की नज़र उनके युग की नई पीढ़ी के ग़ुस्से और नाराज़गी से सजी बनी है. यह ग़ुस्सा और नाराज़गी उस अन्याय और राजनीति के कुकर्मो के ख़िलाफ़ नए तेवरों की आवाज़ थी, जो समाज में मध्यवर्गीय झूठेपन की जगह पिछड़े वर्ग की मेहनत और दया की नुमानंदगी करती है. "'''  ।
 +
 
 +
 
 +
हिन्दी साहित्याकाश में दुष्यन्त सूर्य की तरह देदीप्यमान हैं| समकालीन हिन्दी कविता विशेषकर हिन्दी गज़ल के क्षेत्र में जो लोकप्रियता दुष्यन्त कुमार को मिली वो दशकों बाद विरले किसी कवि को नसीब होती है| दुष्यन्त एक कालजयी कवि हैं और ऐसे कवि समय काल में परिवर्तन हो जाने के बाद भी प्रासंगिक रहते हैं| दुष्यन्त का लेखन का स्वर सड़क से संसद तक गूँजता है| इस कवि ने आपात काल में बेख़ौफ़ कहा था
 +
 
 +
'''मत कहो आकाश में कुहरा घना है
 +
 
 +
यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है|'''
 +
 
 +
 
 +
इस कवि ने कविता ,गीत ,गज़ल ,काव्य नाटक ,कथा आदि सभी विधाओं में लेखन किया लेकिन गज़लों की अपार लोकप्रियता ने अन्य विधाओं को नेपथ्य में डाल दिया|
 +
 
 +
कृतियाँ: =[[सूर्य का स्वागत / दुष्यंत कुमार | सूर्य का स्वागत]];
 +
 
 +
[[आवाजों के घेरे / दुष्यन्त कुमार | आवाज़ों के घेरे]];
 +
 
 +
[[जलते हुए वन का वसन्त / दुष्यंत कुमार | जलते हुए वन का वसन्त]]  
 +
 
 +
(सभी कविता संग्रह)।
 +
 
 +
[[साये में धूप / दुष्यंत कुमार | साये में धूप]] (ग़ज़ल संग्रह)।
 +
 
 +
[[एक कंठ विषपायी / दुष्यन्त कुमार | एक कण्ठ विषपायी]] (काव्य-नाटिका)
 +
आदि दुष्यन्त की प्रमुख कृतियाँ हैं|
 
</poem>
 
</poem>

14:09, 31 जनवरी 2012 का अवतरण

दुष्यंत कुमार बिजनौर के रहने वाले थे ।

दुष्यंत कुमार त्यागी (१९३३-१९७७) एक हिंदी कवि और ग़ज़लकार थे ।

दुष्यन्त कुमार का जन्म बिजनौर जनपद उत्तर प्रदेश के ग्राम राजपुर नवादा में 01 सितम्बर 1933 को और निधन भोपाल में 30 दिसम्बर 1975 को हुआ था| इलाहबाद विश्व विद्यालय से शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत कुछ दिन आकाशवाणी भोपाल में असिस्टेंट प्रोड्यूसर रहे बाद में प्रोड्यूसर पद पर ज्वाइन करना था लेकिन तभी हिन्दी साहित्याकाश का यह सूर्य अस्त हो गया| इलाहबाद में कमलेश्वर, मार्कण्डेय और दुष्यन्त की दोस्ती बहुत लोकप्रिय थी वास्तविक जीवन में दुष्यन्त बहुत, सहज और मनमौजी व्यक्ति थे| कथाकार कमलेश्वर बाद में दुष्यन्त के समधी भी हुए| दुष्यन्त का पूरा नाम दुष्यन्त कुमार त्यागी था| प्रारम्भ में दुष्यन्त कुमार परदेशी के नाम से लेखन करते थे|
 
जिस समय दुष्यंत कुमार ने साहित्य की दुनिया में अपने कदम रखे उस समय भोपाल के दो प्रगतिशील (तरक्कीपसंद) शायरों ताज भोपाली तथा क़ैफ़ भोपाली का ग़ज़लों की दुनिया पर राज था । हिन्दी में भी उस समय अज्ञेय तथा गजानन माधव मुक्तिबोध की कठिन कविताओं का बोलबाला था । उस समय आम आदमी के लिए नागार्जुन तथा धूमिल जैसे कुछ कवि ही बच गए थे । इस समय सिर्फ़ ४२ वर्ष के जीवन में दुष्यंत कुमार ने अपार ख्याति अर्जित की । निदा फ़ाज़ली उनके बारे में लिखते हैं

"दुष्यंत की नज़र उनके युग की नई पीढ़ी के ग़ुस्से और नाराज़गी से सजी बनी है. यह ग़ुस्सा और नाराज़गी उस अन्याय और राजनीति के कुकर्मो के ख़िलाफ़ नए तेवरों की आवाज़ थी, जो समाज में मध्यवर्गीय झूठेपन की जगह पिछड़े वर्ग की मेहनत और दया की नुमानंदगी करती है. "


हिन्दी साहित्याकाश में दुष्यन्त सूर्य की तरह देदीप्यमान हैं| समकालीन हिन्दी कविता विशेषकर हिन्दी गज़ल के क्षेत्र में जो लोकप्रियता दुष्यन्त कुमार को मिली वो दशकों बाद विरले किसी कवि को नसीब होती है| दुष्यन्त एक कालजयी कवि हैं और ऐसे कवि समय काल में परिवर्तन हो जाने के बाद भी प्रासंगिक रहते हैं| दुष्यन्त का लेखन का स्वर सड़क से संसद तक गूँजता है| इस कवि ने आपात काल में बेख़ौफ़ कहा था

मत कहो आकाश में कुहरा घना है

यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है|


इस कवि ने कविता ,गीत ,गज़ल ,काव्य नाटक ,कथा आदि सभी विधाओं में लेखन किया लेकिन गज़लों की अपार लोकप्रियता ने अन्य विधाओं को नेपथ्य में डाल दिया|

कृतियाँ: = सूर्य का स्वागत;

आवाज़ों के घेरे;

जलते हुए वन का वसन्त

(सभी कविता संग्रह)।

साये में धूप (ग़ज़ल संग्रह)।

एक कण्ठ विषपायी (काव्य-नाटिका)
आदि दुष्यन्त की प्रमुख कृतियाँ हैं|