"आजु बधाई नंद कैं माई / सूरदास" के अवतरणों में अंतर
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23:41, 5 अक्टूबर 2007 के समय का अवतरण
राग जैतश्री
आजु बधाई नंद कैं माई । ब्रज की नारि सकल जुरि आई ॥
सुंदर नंद महर कैं मंदिर । प्रगट्यौ पूत सकल सुख- कंदर ॥
जसुमति-ढोटा ब्रज की सोभा । देखि सखी, कछु औरैं गोभा ॥
लछिमी- सी जहँ मालिनि बोलै । बंदन-माला बाँधत डोलै ॥
द्वार बुहाराति फिरति अष्ट सिधि । कौरनि सथिया चीततिं नवनिधि ॥
गृह-गृह तैं गोपी गवनीं जब । रंग-गलिनि बिच भीर भई तब ॥
सुबरन-थार रहे हाथनि लसि । कमलनि चढ़ि आए मानौ ससि ॥
उमँगी -प्रेम-नदी-छबि पावै । नंद-सदन-सागर कौं धावैं ॥
कंचन-कलस जगमगैं नग के । भागे सकल अमंगल जग के ॥
डोलत ग्वाल मनौ रन जीते । भए सबनि के मन के चीते ॥
अति आनंद नंद रस भीने । परबत सात रतन के दीने ॥
कामधेनु तैं नैंकु न हीनी । द्वै लख धेनु द्विजनि कौं दीनी ॥
नंद-पौरि जे जाँचन आए । बहुरौ फिरि जाचक न कहाए ॥
घर के ठाकुर कैं सुत जायौ । सूरदास तब सब सुख पायौ ॥
भावार्थ :--सखी! आज श्री नन्द जी के यहाँ बधाई बज रही है । व्रज की सभी नारियाँ आकर एकत्र हो गयी हैं । व्रजराज श्रीनन्द जी के सुन्दर भवन में सभी सुखों का निधान पुत्र प्रकट हुआ है । श्रीयशोदा जी का पुत्र तो व्रज की शोभा है । सखी, देखो! उसकी कान्ति ही कुछ और (अलौकिक) ही है । जहाँ लक्ष्मी जी जैसी देवियाँ मालिनी कहलाती हैं और बन्दनवार में मालाएँ बाँधती घूमती हैं। आठों सिद्धियाँ द्वार पर झाडू लगाती हैं । नवों निधियाँ द्वार-भितियों पर स्वस्तिक के चित्र बनाती हैं । जब गोपियाँ घर-घर से चलीं, तब अनुरागमयी वीथियों में भीड़ हो गयी उनके करों में सोने के थाल ऐसे शोभा दे रहे थे मानो अनेकों चन्द्रमा कमलों पर बैठ-बैठकर आ गये हों (ये गोपियाँ) प्रेम से उमड़ी नदियों के समान शोभा दे रही हैं, जो नन्दभवनरुपी समुद्र की ओर दौड़ती जा रही हैं । भवनों पर मणि जटित स्वर्णकलश जगमग कर रहे हैं । आज विश्व के समस्त अमंगल भाग गये । गोप इस प्रकार घूम रहे हैं । मानो युद्ध में विजयी हो गये हों, सबकी मनोऽभिलाषा आज पूरी हो गयी है । श्रीनन्द जी ने अत्यन्त आनन्दरस से आर्द्र होकर रत्नों के सात पर्वत दान किये । जो गायें कामधेनु से तनिक भी घटकर नहीं थीं ऐसी दो लाख गायें ब्राह्मणों को दान कीं । जो आज नन्द जी के द्वारपर माँगने आ गये,फिर कभी वे याचक नहीं कहे गये (उनसे इतना धन मिला कि फिर कभी माँगना नहीं पड़ा) सूरदास जी कहते है-मेरे घर के (निजी) स्वामी (श्रीनन्द जी) के जब पुत्र उत्पन्न हुआ, तब मैनें सब सुख पा लिया ।