"हाइकु 101-120 / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'" के अवतरणों में अंतर
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02:02, 15 अप्रैल 2012 का अवतरण
101 शीतल छाँव जहाँ धरे पाँव ये मेरी बहन । 102 पीठ है खुली कुछ वार करेंगे यार करेंगे। 103 मरने के सौ तो हज़ार बहाने हैं जीवन के 104 चकाचौंध की इस नगरी में आ हम खो गए । 105 पके आम से सहज चुए रस हाइकु वैसे । 106 दर्द था मेरा मिल शब्द तुम्हारे गीत बने थे । 107 पता चला न किस पल अपने मीत बने थे । 108 मृग बावरा है नाभि में कस्तूरी कभी न जाने । 109 गुणी जो होता निज मन- चंदन न पहचाने । 110 जीवन-घट जब जितना ढरे उतना भरे । 111 अविश्वासी जो विश्वास कब करे जिए या मरे । 112 काँटे जो मिले जीवन के गुलाब उन्हीं में खिले । 113 मोती न सही
हैं बहुत कीमती
आँसू तुम्हारे । 114 पैसे की भूख बनी जो ज्वालामुखी करेगी दुखी । 115
क्रूर ये सत्ता
छीन लेती है छत, कौर व लत्ता ।
116
दफ़्तर गुफा हैं छिपे रक्तपायी जीव लापता । 117 सच्चा लगाव मिटा गया पल में सारे अभाव । 118 आरोप सभी लिखे अपने नाम मिला आराम । 119
मन में छल
तो छलकेगा कैसे सुधा का घट। 120
वीणा के तार
कसोगे सही तभी गूँजेगा राग। -0- </poem>