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काट लेना पेड़ बरगद का ख़ुशी से | काट लेना पेड़ बरगद का ख़ुशी से | ||
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नाश या निर्माण कर, अधिकार तेरा । | नाश या निर्माण कर, अधिकार तेरा । | ||
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तू चला बेशक कुल्हाड़ी, किन्तु पहले | तू चला बेशक कुल्हाड़ी, किन्तु पहले | ||
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पाखियों को ढूंढ़ने तो दे बसेरा । | पाखियों को ढूंढ़ने तो दे बसेरा । | ||
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है नशे में धुत्त, न जानेगा कभी तू | है नशे में धुत्त, न जानेगा कभी तू | ||
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यह अहं तलवार का कितना बुरा है | यह अहं तलवार का कितना बुरा है | ||
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तू न संगत में रहा कवि की, इसी से | तू न संगत में रहा कवि की, इसी से | ||
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यार, तेरा लफ़्ज इतना ख़ुरदुरा है | यार, तेरा लफ़्ज इतना ख़ुरदुरा है | ||
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रात के अंतिम पहर तक जागता जो | रात के अंतिम पहर तक जागता जो | ||
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सांझ ही उस कौम का होता सबेरा । | सांझ ही उस कौम का होता सबेरा । | ||
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देख तूने भी लिया है बाज होकर | देख तूने भी लिया है बाज होकर | ||
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बाज होना : काटना ख़ुद को अकेले । | बाज होना : काटना ख़ुद को अकेले । | ||
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अब जरा मेरी तरह तू बन कबूतर | अब जरा मेरी तरह तू बन कबूतर | ||
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और फिर तू झेल दुनिया के झमेले | और फिर तू झेल दुनिया के झमेले | ||
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इक गुटरगूँ प्यार का तू बोल प्यारे | इक गुटरगूँ प्यार का तू बोल प्यारे | ||
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मुस्करा कर काट दे गम का अंधेरा । | मुस्करा कर काट दे गम का अंधेरा । | ||
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जानता मैं भी कि चैती के दिनों में | जानता मैं भी कि चैती के दिनों में | ||
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तोड़ देना बांध को कितना सरल है | तोड़ देना बांध को कितना सरल है | ||
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किन्तु जब बहने लगेंगे बाढ़ में घर | किन्तु जब बहने लगेंगे बाढ़ में घर | ||
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तब समझना यह नदी कितनी प्रबल है । | तब समझना यह नदी कितनी प्रबल है । | ||
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रंग भरना सीख पहले ज़िन्दगी से | रंग भरना सीख पहले ज़िन्दगी से | ||
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तब कहीं जाकर कभी बनना चितेरा । | तब कहीं जाकर कभी बनना चितेरा । | ||
− | (रचनाकाल : 27.05.2000) | + | '''(रचनाकाल : 27.05.2000) |
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01:49, 29 जनवरी 2009 के समय का अवतरण
काट लेना पेड़ बरगद का ख़ुशी से
नाश या निर्माण कर, अधिकार तेरा ।
तू चला बेशक कुल्हाड़ी, किन्तु पहले
पाखियों को ढूंढ़ने तो दे बसेरा ।
है नशे में धुत्त, न जानेगा कभी तू
यह अहं तलवार का कितना बुरा है
तू न संगत में रहा कवि की, इसी से
यार, तेरा लफ़्ज इतना ख़ुरदुरा है
रात के अंतिम पहर तक जागता जो
सांझ ही उस कौम का होता सबेरा ।
देख तूने भी लिया है बाज होकर
बाज होना : काटना ख़ुद को अकेले ।
अब जरा मेरी तरह तू बन कबूतर
और फिर तू झेल दुनिया के झमेले
इक गुटरगूँ प्यार का तू बोल प्यारे
मुस्करा कर काट दे गम का अंधेरा ।
जानता मैं भी कि चैती के दिनों में
तोड़ देना बांध को कितना सरल है
किन्तु जब बहने लगेंगे बाढ़ में घर
तब समझना यह नदी कितनी प्रबल है ।
रंग भरना सीख पहले ज़िन्दगी से
तब कहीं जाकर कभी बनना चितेरा ।
(रचनाकाल : 27.05.2000)