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"चोका9-10 / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'" के अवतरणों में अंतर

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<poem>
 
9-परछाई की पीड़ा
 
  
नहीं बैठना
 
सटकर  दो पल
 
जलन -भरी
 
मेरी परछाई से
 
दे देगी पीड़ा
 
दो पल की छुअन
 
जग जाएँगी
 
सोई सभी कथाएँ
 
तड़पा देंगी
 
जीवन की व्यथाएँ !
 
वो स्वर्णकेशी
 
परियों का नर्तन
 
अश्रु-चुम्बन
 
भावमग्न होते ही
 
विदा हो जाना ,
 
फिर लौट न पाना
 
विवशता में
 
कुछ छटपटाना
 
गए पहर
 
चाँद का सुबकना
 
किसने जाना ?
 
छू न पाना हथेली
 
वो प्यार-भरी
 
सहमी और डरी
 
लिख न पाना-
 
‘जन्मों की अभिलाषा,
 
आग जगी मन की ।
 
-0-
 
10-मुझे बल देना
 
 
बाधाएँ खड़ीं
 
इम्तहान की घड़ी
 
बहुत बड़ी
 
रुकना नहीं सीखा
 
न झुकना ही
 
बढ़ते ही जाने को
 
जीवन माना
 
कोई तो साथ चले
 
अब क्या सोचें
 
अपनी गठरी ले
 
चल ही देना
 
भोर हुई मन की
 
कुछ न लेना
 
कुछ देना ही चाहो
 
होंगे बहुत
 
दो ही बोल तुम्हारे
 
जग को प्यारे
 
संग में चल देना
 
मुझे यूँ बल देना
 
-0-
 
</poem>
 

21:10, 18 मई 2012 के समय का अवतरण