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सदाए-बाँगे-जरस=घंटियों की आवाज़ की धुन; नज़ाद=वंश
यह क़िता अप्रतिम एकांकी-नातककार नाटककार भुवनेश्वर की याद को समर्पित है ।
'कारवाँ' भुवनेश्वर के एकांकी-संग्रह का शीर्षक है ।
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