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इलाहाबाद में निराला / बोधिसत्व

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अंधकार में वह क्यों रोया था<br>
उसने सचमुच में कुछ खोया था ।<br><br>
'''6<br><br>
कई दिन हुए घर से निकले<br>
पर कोई उसे ढूंढ़ने नहीं निकला<br>
न ही पूछने आया कोई दारागंज से<br>
न ही कोई आया गढ़ाकोला से<br>
महिसादल से<br>
न निकला कुल्ली भाट न बिल्लेसुर बकरिहा<br>
न चतुरी चमार<br>
सरोज तो आ सकती थी खोजते हुए<br>
पर भूल रहा हूँ<br>
वह तो नहीं रही थी पहले ही<br>
उसका तर्पण तो किया था बूढ़े ने ही<br>
अब कोई नहीं जो ले खोज ख़बर<br>
अब जाए कहाँ क्या करे काम<br>
किसको बतलाए नाम-धाम<br>
उससे किसी को स्नेह नहीं<br>
वह पानी वाला मेह नहीं<br>
उसका कोई इतिहास नहीं<br>
कुछ छोटे-छोटे प्रश्नों के<br>
उत्तर की कोई आस नहीं<br>
घ्हटना यह कोई ख़ास नहीं<br>
आए दिन होता है लाला<br>
कुछ सोचो मत अब जाओ घर<br>
गंगा की रेती पर वृद्ध प्रवर<br>
मरता है तो मरने दो<br>
बस अपनी नौका को तरने दो ।<br><br>
'''7<br><br>
उसकी गाँठ में कुछ नहीं था<br>
वह किसी को नहीं दे सकता था कुछ भी<br>
आशीष और शाप के सिवा<br>
वह बुझ गया था<br>
छिन गई थी उसकी चमक-दमक<br>
कि दुनिया में<br><br>
वह आपकी तरह था<br>
एक कटी बाँह को सहलाती<br>
दूसरी बाँह की तरह था<br>
वह ऎसे था जैसे<br>
धरती के बनने से जागा हो<br>
वह ऎसे था जैसे<br>
कपड़े के थान से नुच गया धागा हो ।<br><br>
'''8<br><br>
पुलिन पर वह आज़ाद था<br>
तारों की तरह<br>
गायों की तरह<br>
उसे हाँकने वाला कौन था<br>
उस अंधेरे गंगा के कछार में<br>
उसकी खोज में झांकने वाला कौन था ।<br><br>
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