"जमीन हमरी लै लेउ / उमेश चौहान" के अवतरणों में अंतर
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लै लेउ यह जमीन सारी, | लै लेउ यह जमीन सारी, | ||
हम ते अब किसानी कै पहिचान सारी लै लेउ! | हम ते अब किसानी कै पहिचान सारी लै लेउ! | ||
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13:34, 26 सितम्बर 2013 का अवतरण
लै लेउ!
अब जमीन हमरी लै लेउ!
खेतु लेउ!
खलिहानु लेउ!
ऊसरु लेउ!
उपजाऊ लेउ!
जौनि चाहौ तौनि लेउ!
पुरिखन कै थाती लेउ!
बुझे दिया कै बाती लेउ!
प्रानन ते पियारी लेउ!
अँसुवन कै कियारी लेउ!
लै लेउ! सरकार अब लै ही लेउ!
कर्जु सहा जाति नहीं,
बीजु बोवा जाति नहीं,
आत्महत्याकारी भूमि लै ही लेउ!
जौनु भाव चाहौ हमैं तौनु देउ!
कौनौ औरु जियै का सहारा देउ!
सूखि गईं ईंटन मां गारा देउ!
दवा देउ!
दारू देउ!
गाड़ी याक मारू देउ!
इज्जत देउ,
पहिचान देउ!
नौकरी देउ!
अरमान देउ!
माटी कै मड़ैया अब
लरिकनौ का ना चाही,
सूखि गए बेरवन मां
कहाँ कौनिउ छाँह बाकी,
हमैं तो अब उड़ै का अकासु चाही,
हमैं तो अब बूड़ै का पतालु चाही,
चुल्लू भरि पानी मां अब डूबि मरै का मनु नाही!
सेज़ के नाम पै लै लेउ!
पॉवर प्लान्ट के नाम पै लै लेउ!
मल्टीनेशनल कै खातिर लै लेउ!
एक्सप्रेस हाइवे कै खातिर लै लेउ!
लैंड बैंक के खाता मां लै लेउ!
जौने नाम ते चाहौ लै लेउ!
लै लेउ! यह धरती लेउ!
फसलन कै अरथी लेउ!
सगरी ठकुरसुहाती लेउ!
फारि कै हमरी छाती लेउ!
काँधेन ते हरु खींचि-खींचि,
पसीना ते ख्यात सींचि-सींचि,
बीति गवै उमिरि सारी,
मिटी ना कबहूँ उधारी,
अब तो है हिम्मत हारी,
लै लेउ यह जमीन सारी,
हम ते अब किसानी कै पहिचान सारी लै लेउ!