भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"नमी / नीना कुमार" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीना कुमार }} {{KKCatGhazal}} <poem> पाँव रखना स...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
{{KKCatGhazal}}
 
{{KKCatGhazal}}
 
<poem>
 
<poem>
पाँव रखना संभल कर भीगी ज़मी पर
+
पाँव रखना संभल कर भीगी ज़मी पर  
दर्दे-दिल आबाद है अब इस नमी पर  
+
दर्दे-दिल आबाद है अब इस नमी पर  
 
   
 
   
हर बूँद से गिरती यहाँ इक दास्ताँ,  पर   
+
हर बूँद से गिरती यहाँ इक दास्ताँ, पर  
बरसेंगे कितना, है ये बादल मौसमी, पर  
+
बरसेंगे कितना, है ये बादल मौसमी, पर  
 
   
 
   
झील के भरने की अब खुशियाँ मना लो  
+
झील के भरने की अब खुशियाँ मना लो
ये तो मौसमे-रहमो-करम है आदमी पर  
+
ये तो मौसम का रहमो-करम है आदमी पर
 
   
 
   
कुदरत को रोक पाए है कब ये ज़माना  
+
कुदरत को रोक पाए है कब ये ज़माना  
हैरान हैं लेकिन ज़िन्दगी की बेदमी पर  
+
हैरान हैं लेकिन ज़िन्दगी की बेदमी पर  
 
   
 
   
ये कुदरत-ए-अंदाज़  समझ आया नहीं
+
ये अंदाज़-ए-कुदरत समझ आया नहीं  
नब्ज़ तो चलती है, धड़कन है थमी पर  
+
नब्ज़ तो चलती है, धड़कन है थमी पर  
 
   
 
   
क्यूँ गिला करते है हम, इस ज़्यादती पर  
+
क्यूँ गिला करते है हम, इस ज़्यादती पर  
'नीना' हंस लें आज खुद की ही कमी पर
+
'नीना' हंस लें आज खुद की ही कमी पर
 
</poem>
 
</poem>

14:03, 19 जुलाई 2013 के समय का अवतरण

पाँव रखना संभल कर भीगी ज़मी पर
दर्दे-दिल आबाद है अब इस नमी पर
 
हर बूँद से गिरती यहाँ इक दास्ताँ, पर
बरसेंगे कितना, है ये बादल मौसमी, पर
 
झील के भरने की अब खुशियाँ मना लो
ये तो मौसम का रहमो-करम है आदमी पर
 
कुदरत को रोक पाए है कब ये ज़माना
हैरान हैं लेकिन ज़िन्दगी की बेदमी पर
 
ये अंदाज़-ए-कुदरत समझ आया नहीं
नब्ज़ तो चलती है, धड़कन है थमी पर
 
क्यूँ गिला करते है हम, इस ज़्यादती पर
'नीना' हंस लें आज खुद की ही कमी पर