भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हुस्न का जादू जगाए / फ़िराक़ गोरखपुरी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=फ़िराक़ गोरखपुरी |संग्रह= }} [[Category:ग...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
पंक्ति 24: पंक्ति 24:
 
१. चुप्पी                २. जड़ता                ३. प्रलय की सुबह  
 
१. चुप्पी                २. जड़ता                ३. प्रलय की सुबह  
 
४. जादू                  ५. शोभा                ६. अधर्म
 
४. जादू                  ५. शोभा                ६. अधर्म
 +
</poem>

22:23, 25 अक्टूबर 2020 के समय का अवतरण

हुस्न का जादू जगाए इक ज़माना हो गया.
ऐ सुकूते१-शामे-ग़म फिर छेड़ उन आँखों की बात.

ज़िन्दगी को ज़िन्दगी करना कोई आसाँ न था.
हज़्म करके ज़हर को करना पड़ा आबे-हयात.

जा मिली है मौत से आज आदमी की बेहिसी२.
जाग ऐ सुबहे-क़यामत३,उठ अब ऐ दर्दे-हयात.

कुछ हुआ,कुछ भी नहीं और यूँ तो सब कुछ हो गया.
मानी-ए-बेलफ्ज़ है ऐ दोस्त दिल की वारदात.

तेरी बातें हैं कि नग्में तेरे नग्में है सहर४.
ज़ेब५ देते हैं 'फ़िराक़'औरों को कब ये कुफ्रियात६.


१. चुप्पी २. जड़ता ३. प्रलय की सुबह
४. जादू ५. शोभा ६. अधर्म