"होली के छंद /शिवदीन राम जोशी" के अवतरणों में अंतर
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होरी है होरी आज, खेलो ब्रजराज कृष्ण, | होरी है होरी आज, खेलो ब्रजराज कृष्ण, |
05:13, 13 अक्टूबर 2012 का अवतरण
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होरी है होरी आज, खेलो ब्रजराज कृष्ण,
ब्रजबाला संग रंग डारे बरजोरी है।
राधा कृष्ण रंगे रंग, गुवालिये बजावे चंग,
नांच रही झूंम-झूंम अहीरों की छोरी है।
श्यामाजी नचाय रहे श्याम गीत गाय रहे,
शिवदीन मन लुभाय रहे धन्य-धन्य होरी है।
मोहन बांह मरोरी कछु बोली नाय गोरी,
झांकी झांक दौरी देखो नवल किशोरी है।
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फागुन में खेले फाग रसिया गाये ग्वाल बाल,
आलीरी नंदलाल मुरली बजाई है।
ब्रज की ये नारी कभी हिम्मत ना हारी,
श्याम मारे पिचकारी और श्यामा मन भाई है।
ग्वालन की टोली करें गोपियां ठिठोली,
राधे हँस बोली देत कृष्ण को बधाई है।
शिवदीन ये वसंत और लाई है बहार नई,
साजे ब्रजराज आज बाजे शहनाई है।
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कलाधर-किशोरी युगल जोरी कृष्ण राधे की,
मोर मुकुट मुरलीधर, मुरली बजावें है।
श्यामा संग सांचे, श्याम रंग-रंग राचे,
नांच-नांच नांचे, नांच गोपियां नचावे है।
मारी पिचकारी भारी, गिरधारी खेले फाग,
धन्य भाग रंग राग, रागनियां गावे है।
कहता शिवदीनलाल सजे बहुत श्याम लाल,
डारके गुलाल लाल, लाल मन लुभावे है।
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फागुन में फाग, खेले नंदलाल गुवाल बाल,
गोपिन के गुलाल लगा गावें रसिक होरी हैं।
नैन मटकाय हाय मारी पिचकारी कान्ह,
नारी दें गारी नारी पकरे बरजोरी हैं।
राधे रसीली पीली भंग रंग घोर-घोर,
डारे चित्तचोर यह श्यामा नहीं भोरी है।
कहता शिवदीन रसिक रसीली नचाय रही,
रसिया कृष्ण चन्द्र संग अहिरों की छोरी है।
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रंग रंग के रंगे हैं, रंगीले रंग-रंग में,
रंगे-रंगे कृष्ण चन्द्र, गहरे रंगे रंग में।
बजे ताल रंग में, है कमाल रंग में,
गावें गाल रंग में, वे रंग के उमंग में।
शिवदीन संग-संग में, भीग गये रंग में,
लहर के तरंग में, राग रंग चंग में।
ग्वाल बाल रंग में, नंदलाल रंग में,
लाल-लाल रंग में, वो श्यामा श्याम संग में।
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मंगल सुमंगल सदा ही, आनन्द रहे नन्दलाल,
तू गुलाल डार , देख सखी आ रही।
राधे मतवाली आली, चाली रंग डारन को,
गोपियां निराली गाली, श्याम को सुना रही।
सुन-सुन के श्यामलाल, संग-संग गुवाल बाल,
बाजत मृदंग ताल, राधेजी गा रही।
कहता शिवदीन लाल, ऐसी गुलाल उडी,
बादर बन लाल, लाली चहुं ओर छा रही।
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फगवा हम गाय रही घनश्याम गुलाल लगाय बिगार दी सारी,
पकरो घनश्याम को श्यामा कहे उनहूं को बना दई सुन्दर नारी।
आंखी में काजर बेंदी लगा वेतो भागी गये बन में बनवारी,
शिवदीन सरावत गोप वे गोपिका धन्य बनी बनी श्याम की प्यारी।
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गोकुल व बरसाने की नार बजाय-बजाय बजा रही तारी,
अरू वृन्दावन की बनी वे बनी, बनके ठनके अरी दे रही गारी।
श्याम को श्यामा सजाय सजी अहो और गुलाल लगावत प्यारी,
शिवदीन वे जोरी से जोरी मिली ब्रज खेलत होरी है बांके बिहारी।
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ब्रज गोरी होरी यहां खेल रहे ब्रजराज,
रंग डारेगें गुवालिया होना ना नाराज।
होना ना नाराज आज होली है होली,
राधा भीगी भीग गई रेशम की चोली।
मोहन पीताम्बर तेरा राधा ना ले जाय,
शिवदीन रसिक रसिया पिया प्रेम सुधा बरसाय।
राम गुण गायरे।।
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ब्रज वृन्दावन धाम रंग से रँगा रंगीला,
हरा मोतियां लाल रंग है प्यारा पीला।
धूम धाम से खेल, खेल रहे होरी देखो,
श्यामा श्याम सुजान और संग गोरी देखो।
चहुं ओर पिचकारियां रंग-रंग की धार,
शिवदीन सरस रस रसिक जन पीवें करि-करि प्यार।
राम गुण गायरे।।