Changes

{{KKRachna
|रचनाकार=सूरदास
}}  राग गोरी  राग गोरी
<poem>
कहां लौं कहिए ब्रज की बात।
 
सुनहु स्याम, तुम बिनु उन लोगनि जैसें दिवस बिहात॥
 
गोपी गाइ ग्वाल गोसुत वै मलिन बदन कृसगात।
 
परमदीन जनु सिसिर हिमी हत अंबुज गन बिनु पात॥
 
जो कहुं आवत देखि दूरि तें पूंछत सब कुसलात।
 
चलन न देत प्रेम आतुर उर, कर चरननि लपटात॥
 
पिक चातक बन बसन न पावहिं, बायस बलिहिं न खात।
 
सूर, स्याम संदेसनि के डर पथिक न उहिं मग जात॥
 </poem>
यह शकुन माना जाता है। पर अब कोए भी वहां जाना पसंद नहीं करते। वे बलि की तरफ
देखते भी नहीं। यह शकुन भी असत्य हो गया।
 
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits