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<div style="font-size:15px; font-weight:bold">धूप वाले दिन</div>
+
<div style="font-size:15px; font-weight:bold">चीरहरण करती है दिल्ली</div>
<div style="font-size:15px;"> कवि:[[देवेन्द्र आर्य| देवेन्द्र आर्य]] </div>
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<div style="font-size:15px;"> कवि:[[जयकृष्ण राय तुषार| जयकृष्ण राय तुषार]] </div>
 
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शीत ने कितने चुभोए
+
यमुना में
कोहरे के पिन
+
गर चुल्लू भर
अलगनी पर टँक गए
+
पानी हो दिल्ली डूब मरो ।
लो, धूपवाले दिन
+
स्याह ... चाँदनी चौक हो गया
 +
नादिरशाहो तनिक डरो
  
ठुमकती फिरती वसंती हवा
+
नहीं राजधानी के
उपवन में,
+
लायक
गीत गातीं कोयलें
+
चीरहरण करती है दिल्ली,
मदमस्त मधुबन में
+
भारत माँ
फूल पर मधुमास करता नृत्य
+
की छवि दुनिया में  
ता धिन-धिन
+
शर्मसार करती है दिल्ली,
अलगनी पर टँक गए
+
संविधान की
लो, धूपवाले दिन
+
क़समें
 +
खाने वालो, कुछ तो अब सुधरो
  
पीतवसना घूमती सरसों
+
तालिबान में,
लगा पाँखें,
+
तुझमें क्या है
मस्त अलसी की लजाती
+
फ़र्क सोचकर हमें बताओ,
नीलमणि आँखें ।
+
जो भी
ताल में धर पाँव
+
गुनहगार हैं उनको
उतरे चाँदनी पल छिन
+
फाँसी के तख़्ते तक लाओ,
अलगनी पर टँक गए
+
दुनिया को
लो, धूपवाले दिन
+
क्या मुँह
 +
दिखलाओगे नामर्दो शर्म करो
  
दूर वंशी के स्वरों में
+
क्राँति करो
गूँजता कानन,
+
अब अत्याचारी
वर्जना टूटी
+
महलों की दीवार ढहा दो,
खिला सौ चाह का आनन ।
+
कठपुतली
श्याम को श्यामा पुकारे
+
परधान देश का  
साँस भर गिन-गिन
+
उसको मौला राह दिखा दो,
अलगनी पर टँक गए
+
भ्रष्टाचारी
लो, धूपवाले दिन ।
+
हाक़िम दिन भर
 +
गाल बजाते उन्हें धरो
  
 +
गोरख पांडेय का
 +
अनुयायी
 +
चुप क्यों है मजनू का टीला,
 +
आसमान की
 +
झुकी निगाहें
 +
हुआ शर्म से चेहरा पीला,
 +
इस समाज
 +
का चेहरा बदलो
 +
नुक्कड़ नाटक बन्द करो ।
 +
 +
गद्दी का
 +
गुनाह है इतना
 +
उस पर बैठी बूढी अम्मा,
 +
दु:शासन हो
 +
गया प्रशासन
 +
पुलिस-तन्त्र हो गया निकम्मा ,
 +
कुर्सी
 +
बची रहेगी केवल
 +
इटली का गुणगान करो ।
 
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22:45, 20 दिसम्बर 2012 का अवतरण

Lotus-48x48.png
चीरहरण करती है दिल्ली
यमुना में 
गर चुल्लू भर 
पानी हो दिल्ली डूब मरो ।
स्याह ... चाँदनी चौक हो गया 
नादिरशाहो तनिक डरो ।

नहीं राजधानी के 
लायक 
चीरहरण करती है दिल्ली,
भारत माँ 
की छवि दुनिया में 
शर्मसार करती है दिल्ली,
संविधान की 
क़समें 
खाने वालो, कुछ तो अब सुधरो ।

तालिबान में,
तुझमें क्या है 
फ़र्क सोचकर हमें बताओ,
जो भी 
गुनहगार हैं उनको 
फाँसी के तख़्ते तक लाओ,
दुनिया को 
क्या मुँह 
दिखलाओगे नामर्दो शर्म करो ।

क्राँति करो 
अब अत्याचारी 
महलों की दीवार ढहा दो,
कठपुतली 
परधान देश का 
उसको मौला राह दिखा दो,
भ्रष्टाचारी 
हाक़िम दिन भर 
गाल बजाते उन्हें धरो ।

गोरख पांडेय का 
अनुयायी 
चुप क्यों है मजनू का टीला,
आसमान की 
झुकी निगाहें 
हुआ शर्म से चेहरा पीला,
इस समाज 
का चेहरा बदलो 
नुक्कड़ नाटक बन्द करो ।

गद्दी का 
गुनाह है इतना 
उस पर बैठी बूढी अम्मा,
दु:शासन हो 
गया प्रशासन 
पुलिस-तन्त्र हो गया निकम्मा ,
कुर्सी 
बची रहेगी केवल 
इटली का गुणगान करो ।