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"आहे सधि आहे सखि / विद्यापति" के अवतरणों में अंतर

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हम अति बालिक आकुल नाह।।<br>
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ब केबाड पहु देलन्हि लगाय।।<br>
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ताहि अवसर कर धयलनि कंत।<br>
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आहे सखि आहे सखि लए जनि जाह। हम अति बालिका निरदए नाह।
चीर सम्हारइत जिब भेल अंत।।<br>
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गोट-गोट सखि सब गेलि बहराए। बजर केवाड़ पहु देलन्हि लगाए।
नहि नहि करिअ नयन ढर नीर।<br>
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ताहि अवसर सखि जागल कंत। चीर संभारइत जिब भेल अंत।
कांच कमल भमरा झिकझोर।।<br>
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नहि नहि करिअ नयन ढर नोर। कांच कमल भमरा झिकझोर।
जइसे डगमग नलिनिक नीर।<br>
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जइसे डगमग नलिनिक नीर। तइसे डगमग धनिक सरीर।
तइसे डगमग धनिक सरीर।।<br>
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भन विद्यापति सुनु कविराज। आगि जारि पुनि आगिक काज।
भन विद्यापति सुनु कविराज।<br>
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आगि जारि पुनि आमिक लाज।। <br>
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[नागार्जुन का अनुवाद : ओ सखी, मुझे अन्दर मत ले जाओ। मैं बहुत छोटी हूँ और कन्त बड़े निठुर हैं। हाय, सहेलियाँ एक-एक करके खिसक गईं। जाते-जाते जोरों से किवाड़ लगा गईं। उसी वक़्त कन्त जग गए। मैंने मुश्किल से कपड़ों को सम्भाला, मेरी जान निकल रही थी। ना-ना होती रही। आँखों से आँसू बहते रहे। अधखिले कमल को भ्रमर झकझोरता रहा। कमल के पत्ते पर जैसे पानी काँपता है, उसी तरह सुन्दरी का शरीर थरथरा रहा था। विद्यापति ने कहा, 'आग अपनी आँच से कष्‍ट पहुँचाती है, फिर भी आग की जरूरत पड़ती है...']
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03:50, 29 जून 2014 के समय का अवतरण

आहे सखि आहे सखि लए जनि जाह। हम अति बालिका निरदए नाह।
गोट-गोट सखि सब गेलि बहराए। बजर केवाड़ पहु देलन्हि लगाए।
ताहि अवसर सखि जागल कंत। चीर संभारइत जिब भेल अंत।
नहि नहि करिअ नयन ढर नोर। कांच कमल भमरा झिकझोर।
जइसे डगमग नलिनिक नीर। तइसे डगमग धनिक सरीर।
भन विद्यापति सुनु कविराज। आगि जारि पुनि आगिक काज।

[नागार्जुन का अनुवाद : ओ सखी, मुझे अन्दर मत ले जाओ। मैं बहुत छोटी हूँ और कन्त बड़े निठुर हैं। हाय, सहेलियाँ एक-एक करके खिसक गईं। जाते-जाते जोरों से किवाड़ लगा गईं। उसी वक़्त कन्त जग गए। मैंने मुश्किल से कपड़ों को सम्भाला, मेरी जान निकल रही थी। ना-ना होती रही। आँखों से आँसू बहते रहे। अधखिले कमल को भ्रमर झकझोरता रहा। कमल के पत्ते पर जैसे पानी काँपता है, उसी तरह सुन्दरी का शरीर थरथरा रहा था। विद्यापति ने कहा, 'आग अपनी आँच से कष्‍ट पहुँचाती है, फिर भी आग की जरूरत पड़ती है...']