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− | + | यह अनाज जो बदल रक्त में | |
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− | + | सब उधार का, माँगा चाहा | |
− | + | नमक-तेल, हींग-हल्दी तक | |
+ | सब कर्जे का | ||
+ | यह शरीर भी उनका बंधक | ||
− | + | अपना क्या है इस जीवन में | |
− | + | सब तो लिया उधार | |
− | + | सारा लोहा उन लोगों का | |
− | + | अपनी केवल धार । | |
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23:58, 14 फ़रवरी 2013 का अवतरण
धार
रचनाकार: अरुण कमल
कौन बचा है जिसके आगे
इन हाथों को नहीं पसारा
यह अनाज जो बदल रक्त में
टहल रहा है तन के कोने-कोने
यह कमीज़ जो ढाल बनी है
बारिश सरदी लू में
सब उधार का, माँगा चाहा
नमक-तेल, हींग-हल्दी तक
सब कर्जे का
यह शरीर भी उनका बंधक
अपना क्या है इस जीवन में
सब तो लिया उधार
सारा लोहा उन लोगों का
अपनी केवल धार ।