भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आज तुम्हारा जन्मदिवस / नामवर सिंह" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 18: पंक्ति 18:
 
मस्तक कंकड़ भरा किसी ने ज्यों हिला दिया ।
 
मस्तक कंकड़ भरा किसी ने ज्यों हिला दिया ।
 
हर सुंदर को देख सोचता क्यों मिला हिया
 
हर सुंदर को देख सोचता क्यों मिला हिया
यदि उससे वंचित रह जाता तू...?
+
यदि उससे वंचित रह जाता तुम्हीं-सा सगा।
  
 
क्षमा मत करो वत्स, आ गया दिन ही ऐसा
 
क्षमा मत करो वत्स, आ गया दिन ही ऐसा
 
आँख खोलती कलियाँ भी कहती हैं पैसा।
 
आँख खोलती कलियाँ भी कहती हैं पैसा।
 
</poem>
 
</poem>

18:43, 29 जुलाई 2018 के समय का अवतरण

आज तुम्हारा जन्मदिवस, यूँ ही यह संध्या
भी चली गई, किंतु अभागा मैं न जा सका
समुख तुम्हारे और नदी तट भटका-भटका
कभी देखता हाथ कभी लेखनी अबन्ध्या ।

पार हाट, शायद मेल; रंग-रंग गुब्बारे ।
उठते लघु-लघु हाथ,सीटियाँ; शिशु सजे-धजे
मचल रहे... सोचूँ कि अचानक दूर छ: बजे ।
पथ, इमली में भरा व्योम,आ बैठे तारे

'सेवा उपवन', पुष्पमित्र गंधवह आ लगा
मस्तक कंकड़ भरा किसी ने ज्यों हिला दिया ।
हर सुंदर को देख सोचता क्यों मिला हिया
यदि उससे वंचित रह जाता तुम्हीं-सा सगा।

क्षमा मत करो वत्स, आ गया दिन ही ऐसा
आँख खोलती कलियाँ भी कहती हैं पैसा।