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जी में जो अनुराग तनिक भी जग-जन के हित का हो।4।
नई पौधाों पौधों से ही है आस।
जाति जिलाने वाली, जड़ी सजीवन है इनही के पास।
इनके बने जाति बनती है बिगड़े हो जाती है नास।
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