"खाघि / मन्त्रेश्वर झा" के अवतरणों में अंतर
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मन्त्रेश्वर झा |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} {{K...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
|||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
{{KKCatMaithiliRachna}} | {{KKCatMaithiliRachna}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | कोनाकें पाटत ई खाधि ? | |
− | + | ई पीढ़ीक अन्तर, | |
− | + | जे नित्त भेल जाइत अछि गहींर | |
− | + | बापकें बेटा आ बेटाकें बाप | |
− | + | कहियो नहि सोहएलैक। | |
− | + | ‘पुत्रात् शिष्यात् पराजय’क सिद्धान्त, | |
− | + | पोथिये में बोहएलैक। | |
− | + | ‘चिरजीवी’ परशुरामकें नहि सोहएलनि कर्ण; | |
− | + | ‘प्रियदर्शी’ अशोककें की | |
− | + | सोहएलनि कुणाल ? | |
− | + | औरंगजेबकें की देखल गेलनि | |
− | + | शाहजहाँ केर भाल ? | |
− | + | बेटाक जन्मेसँ ताली पीटब | |
− | + | कहियो नहि होइत छैक बन्न | |
− | + | मुदा पश्चातापमे बदलि जाइत छै | |
− | + | -क्षणिक सुखक आनन्द। | |
− | + | फाँक पर फाँक तखन मारैत छैक ताली | |
− | + | ‘जय माँ काली’ अन्हरजाली | |
− | + | बापक मरबाक दुःखकें चिबा | |
− | + | -जाइत छैक काल। | |
− | + | अकाल-महाकाल | |
− | + | निकलैत छै गारि आ’ | |
+ | चलैत छै निधोख कोदारि। | ||
+ | तखन कोनाकें पाटत ई खाधि- | ||
+ | ई पीढ़ीक अन्तर- | ||
+ | जे नित भेल जाइत अछि गहींर। | ||
+ | |||
+ | एक खाधिकें पाटबा लेल | ||
+ | केवल दोसर खाधि खूनल जाइत अछि | ||
+ | तें एक पर दोसर आ | ||
+ | दोसर पर तेसर केवल खाधिक | ||
+ | जाल बिछल जाइत अछि | ||
+ | रक्तबीज जकाँ खाधिक सन्तान | ||
+ | बढ़ले जाइत अछि, | ||
+ | पीढ़ी पीढ़ी केर अभियान | ||
+ | बढ़ले जाइत अछि, | ||
+ | पीढ़ी, जकर पैर पातालमे | ||
+ | पाकल छै, | ||
+ | पीढ़ी, जकर माथ आकाशमे | ||
+ | जाकल छै। | ||
+ | तखन कोनाकें | ||
+ | के साटत, ई फाटल विश्वास | ||
+ | कोनोकें | ||
+ | के चाटत ई क्रान्तिक व्याधि ? | ||
+ | तें ई प्रश्न- | ||
+ | जे कोनाकें पाटत ई खाधि, | ||
+ | ई पीढ़ीक अन्तर, | ||
+ | जे नित भेल जाइत अछि गहींर। | ||
</poem> | </poem> |
14:49, 4 जून 2013 के समय का अवतरण
कोनाकें पाटत ई खाधि ?
ई पीढ़ीक अन्तर,
जे नित्त भेल जाइत अछि गहींर
बापकें बेटा आ बेटाकें बाप
कहियो नहि सोहएलैक।
‘पुत्रात् शिष्यात् पराजय’क सिद्धान्त,
पोथिये में बोहएलैक।
‘चिरजीवी’ परशुरामकें नहि सोहएलनि कर्ण;
‘प्रियदर्शी’ अशोककें की
सोहएलनि कुणाल ?
औरंगजेबकें की देखल गेलनि
शाहजहाँ केर भाल ?
बेटाक जन्मेसँ ताली पीटब
कहियो नहि होइत छैक बन्न
मुदा पश्चातापमे बदलि जाइत छै
-क्षणिक सुखक आनन्द।
फाँक पर फाँक तखन मारैत छैक ताली
‘जय माँ काली’ अन्हरजाली
बापक मरबाक दुःखकें चिबा
-जाइत छैक काल।
अकाल-महाकाल
निकलैत छै गारि आ’
चलैत छै निधोख कोदारि।
तखन कोनाकें पाटत ई खाधि-
ई पीढ़ीक अन्तर-
जे नित भेल जाइत अछि गहींर।
एक खाधिकें पाटबा लेल
केवल दोसर खाधि खूनल जाइत अछि
तें एक पर दोसर आ
दोसर पर तेसर केवल खाधिक
जाल बिछल जाइत अछि
रक्तबीज जकाँ खाधिक सन्तान
बढ़ले जाइत अछि,
पीढ़ी पीढ़ी केर अभियान
बढ़ले जाइत अछि,
पीढ़ी, जकर पैर पातालमे
पाकल छै,
पीढ़ी, जकर माथ आकाशमे
जाकल छै।
तखन कोनाकें
के साटत, ई फाटल विश्वास
कोनोकें
के चाटत ई क्रान्तिक व्याधि ?
तें ई प्रश्न-
जे कोनाकें पाटत ई खाधि,
ई पीढ़ीक अन्तर,
जे नित भेल जाइत अछि गहींर।