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"तमाशा / बोधिसत्व" के अवतरणों में अंतर

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'''अब इस कविता का राजस्थानी भावानुवाद पढ़िए'''
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आपरै जमूरै रौ गळौ वाड'
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अर अपां ताळी बजाय रैया हां !
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'''हिन्दी कवितावां  रौ राजस्थानी उल्थौ : मीठेस निरमोही'''  
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00:01, 28 नवम्बर 2020 के समय का अवतरण

तमाशा हो रहा है
और हम ताली बजा रहे हैं

मदारी
पैसे से पैसा बना रहा है
हम ताली बजा रहे हैं

मदारी साँप को
दूध पिला रहा हैं
हम ताली बजा रहे हैं

मदारी हमारा लिंग बदल रहा है
हम ताली बजा रहे हैं

अपने जमूरे का गला काटकर
मदारी कह रहा है —
'ताली बजाओ ज़ोर से'
और हम ताली बजा रहे हैं ।

अब इस कविता का राजस्थानी भावानुवाद पढ़िए
                 बोधिसत्व
                  तमासौ

तमासौ व्है रैयौ है
अर अपां ताळी बजाय रैया हां
मदारी
पीसां सूं पीसा बणाय रैयौ है

मदारी सांप नै दूध पाय रैयौ है
अपां ताळी बजाय रैया हां

मदारी अपां नै
नाजर बणाय रैयौ है
अपां ताळी बजाय रैया हां

आपरै जमूरै रौ गळौ वाड'र
मदारी कैय रैयौ है
ताळी बजावौ जोर सूं
अर अपां ताळी बजाय रैया हां !

हिन्दी कवितावां रौ राजस्थानी उल्थौ : मीठेस निरमोही