Changes

|रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
द्रुत झरो जगत के जीर्ण पत्र!
हे स्त्रस्त ध्वस्त! हे शुष्क शीर्ण!
हिम ताप पीत, मधुमात भीत,
तुम वीतराग, जड़, पुराचीन!!
द्रुत झरो जगत के जीर्ण पत्रनिष्प्राण विगत युग!<br>हे स्त्रस्त ध्वस्तमृत विहंग! हे शुष्क शीर्ण!<br>हिम ताप पीतजग-नीड़, मधुमात भीतशब्द औ\' श्वास-हीन,<br>च्युत, अस्त-व्यस्त पंखों से तुम वीतराग, जड़, पुराचीन!झर-झर अनन्त में हो विलीन!<br><br>
निष्प्राण विगत युग! मृत विहंग!<br>कंकाल जाल जग में फैले जग-नीड़फिर नवल रुधिर, शब्द औ\' श्वास-हीन,<br>पल्लव लाली! च्युत, अस्त-व्यस्त पंखों प्राणों की मर्मर से तुम<br>मुखरित झर-झर अनन्त में हो विलीनजीव की मांसल हरियाली!<br><br>
कंकाल जाल जग में फैले<br>फिर नवल रुधिर,-पल्लव लाली!<br>प्राणों की मर्मर से मुखरित<br>जीव की मांसल हरियाली!<br><br> मंजरित विश्व में यौवन के<br>जगकर जग का पिक, मतवाली<br>निज अमर प्रणय स्वर मदिरा से<br>भर दे फिर नव-युग की प्याली!<br/poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits