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बड़े बेचैन हो आज | बड़े बेचैन हो आज |
08:56, 29 सितम्बर 2013 के समय का अवतरण
शिलाधार!
बड़े बेचैन हो आज
बहुत दिनों बाद
फिर किसी शोर से
भटका है मन तुम्हारा
है न?
रात अनगिनत भटके हो
बहुत अधूरे हो
सुनो,
पूर्णता अहसास है
संपूर्ण कौन हुआ है भला
एक छ्द्म वेश ही सही
धुरी पर अटक कर
स्थिर बने रहने के लिये
कब जन्म लिया था तुमने?
पर रहो स्थिर
स्थिरता ही तो संपूर्णता है
वो आख़िरी बिंदु
जहाँ ’मैं’ समाप्त होता है
’तुम’ समाप्त होता है
और बस रह जाता है
एक शून्य
आओ उस शून्य को पा लें अब...