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हुई विद्रुम बेला नीली / महादेवी वर्मा
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|संग्रह=नीलाम्बरा / महादेवी वर्मा
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मेरी चितवन खींच गगन के कितने रँग लाई ! <br>
शतरंगों के इन्द्रधनुष-सी स्मृति उर में छाई; <br>
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