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मुबारक़ हो नया साल</div>
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दर्द की रात ढल चली है</div>
  
 
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रचनाकार: [[नागार्जुन]]
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रचनाकार: [[फ़ैज़ अहमद फ़ैज़]]
 
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फलाँ-फलाँ इलाके में पड़ा है अकाल
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बात बस से निकल चली है
खुसुर-पुसुर करते हैं, खुश हैं बनिया-बकाल
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दिल की हालत सँभल चली है
छ्लकती ही रहेगी हमदर्दी साँझ-सकाल
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अनाज रहेगा खत्तियों में बन्द !
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हड्डियों के ढेर पर है सफ़ेद ऊन की शाल...
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अब जुनूँ हद से बढ़ चला है
अब के भी बैलों की ही गलेगी दाल !
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अब तबीअत बहल चली है
पाटिल-रेड्डी-घोष बजाएँगे गाल...
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थामेंगे डालरी कमन्द !
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बत्तख हों, बगले हों, मेंढक हों, मराल
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अश्क ख़ूँनाब हो चले हैं
पूछिए चलकर वोटरों से मिजाज का हाल
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ग़म की रंगत बदल चली है
मिला टिकट ? आपको मुबारक हो नया साल
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अब तो बाँटिए मित्रों में कलाकन्द !
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लाख पैग़ाम हो गये हैं
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जब सबा इक पल चली है
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जाओ, अब सो रहो सितारो
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दर्द की रात ढल चली है
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जुनूँ=दीवानगी;
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अश्क=आँसू;
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ख़ूँनाब=लहू के रंग
 
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12:23, 13 फ़रवरी 2014 का अवतरण

दर्द की रात ढल चली है

बात बस से निकल चली है
दिल की हालत सँभल चली है

अब जुनूँ हद से बढ़ चला है
अब तबीअत बहल चली है

अश्क ख़ूँनाब हो चले हैं
ग़म की रंगत बदल चली है

लाख पैग़ाम हो गये हैं
जब सबा इक पल चली है

जाओ, अब सो रहो सितारो
दर्द की रात ढल चली है

जुनूँ=दीवानगी;
अश्क=आँसू;
ख़ूँनाब=लहू के रंग