"चेतावनी / हरिऔध" के अवतरणों में अंतर
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− | + | पिस रहा है आज हिन्दूपन बहुत। | |
− | + | ||
हिन्दुओं में हैं बुरी रुचियाँ जगीं। | हिन्दुओं में हैं बुरी रुचियाँ जगीं। | ||
− | |||
ऐ सपूतो, तुम सपूती मत तजो। | ऐ सपूतो, तुम सपूती मत तजो। | ||
− | + | हैं तुम्हारी ओर ही आँखें लगीं। | |
− | हैं | + | |
हो गया है क्या, समझ पड़ता नहीं। | हो गया है क्या, समझ पड़ता नहीं। | ||
− | |||
हिन्दुओ, ऐसी नहीं देखी कहीं। | हिन्दुओ, ऐसी नहीं देखी कहीं। | ||
− | |||
खोल कर के खोलने वाले थके। | खोल कर के खोलने वाले थके। | ||
− | |||
है तुमारी आँख खुलती ही नहीं। | है तुमारी आँख खुलती ही नहीं। | ||
− | हिन्दुओ, जैसी | + | हिन्दुओ, जैसी तुम्हारी है बनी। |
− | + | ||
बेबसी ऐसी बनी किस की सगी। | बेबसी ऐसी बनी किस की सगी। | ||
− | |||
जागने पर जो लगी ही सी रही। | जागने पर जो लगी ही सी रही। | ||
− | |||
कब किसी की आँख ऐसी है लगी। | कब किसी की आँख ऐसी है लगी। | ||
देख कर बेचारपन से तंग को। | देख कर बेचारपन से तंग को। | ||
− | |||
आप तुम बेचारपन से मत घिरो। | आप तुम बेचारपन से मत घिरो। | ||
− | |||
हो बचा सकते उन्हें तो लो बचा। | हो बचा सकते उन्हें तो लो बचा। | ||
− | |||
हिन्दुओ, आँखें बचाते मत फिरो। | हिन्दुओ, आँखें बचाते मत फिरो। | ||
छीजते ही जा रहे हो हिन्दुओ। | छीजते ही जा रहे हो हिन्दुओ। | ||
− | |||
भाइयों को पाँव से अपने मसल। | भाइयों को पाँव से अपने मसल। | ||
− | |||
है उसी का मिल रह बदला तुम्हें। | है उसी का मिल रह बदला तुम्हें। | ||
− | |||
बेतरह आँखें गई हैं क्यों बदल। | बेतरह आँखें गई हैं क्यों बदल। | ||
हिन्दुओ, हाथ पाँव के होते। | हिन्दुओ, हाथ पाँव के होते। | ||
− | |||
जब कि है बेबसी तुम्हें भाती। | जब कि है बेबसी तुम्हें भाती। | ||
− | |||
तो भला क्यों न फेर में पड़ते। | तो भला क्यों न फेर में पड़ते। | ||
− | |||
दैव की आँख क्यों न फिर जाती। | दैव की आँख क्यों न फिर जाती। | ||
फल फले बैर फूट के जिस में। | फल फले बैर फूट के जिस में। | ||
− | + | दूध से बेलि वह गई सींची। | |
− | + | ||
− | + | ||
देख कर नीचपन तुम्हारा यह। | देख कर नीचपन तुम्हारा यह। | ||
− | |||
हिन्दुओ, आँख हो गई नीची। | हिन्दुओ, आँख हो गई नीची। | ||
सब जगह बे-जागतों को भी जगा। | सब जगह बे-जागतों को भी जगा। | ||
− | |||
आज दिन जो जोत जगती है नई। | आज दिन जो जोत जगती है नई। | ||
− | + | तब भला कैसे हमारे दिन फिरें। | |
− | तब भला | + | |
− | + | ||
जब हमारी दीठ उस से फिर गई। | जब हमारी दीठ उस से फिर गई। | ||
है अगर जीना जियें जीवट दिखा। | है अगर जीना जियें जीवट दिखा। | ||
− | + | या कि अब हम मौत कुत्तो की मरें। | |
− | या कि अब हम मौत | + | |
− | + | ||
पिट गये जितना कि पिट सकते रहे। | पिट गये जितना कि पिट सकते रहे। | ||
− | |||
अब भला रो पीट कर के क्या करें। | अब भला रो पीट कर के क्या करें। | ||
सूझता है न क्या है हो रहा। | सूझता है न क्या है हो रहा। | ||
− | |||
और लम्बी तान कर हैं सो रहे। | और लम्बी तान कर हैं सो रहे। | ||
− | |||
हाथ धोना सब सुखों से ही पड़ा। | हाथ धोना सब सुखों से ही पड़ा। | ||
− | |||
क्या अजब जो आज हैं रो धो रहे। | क्या अजब जो आज हैं रो धो रहे। | ||
थे समझते जाति-हित-रुचि-बेलि को। | थे समझते जाति-हित-रुचि-बेलि को। | ||
− | |||
कर सकेंगे हम हरी आँसू चुआ। | कर सकेंगे हम हरी आँसू चुआ। | ||
− | |||
वह पनपने भी अगर पाई नहीं। | वह पनपने भी अगर पाई नहीं। | ||
− | + | कुछ न तो रोने कलपने से हुआ। | |
− | + | ||
जी लगा जाति के सुनो दुखड़े। | जी लगा जाति के सुनो दुखड़े। | ||
− | |||
सच्च कहते हुए डिगो न डरो। | सच्च कहते हुए डिगो न डरो। | ||
− | |||
एक क्या लाख जोड़बन्द लगे। | एक क्या लाख जोड़बन्द लगे। | ||
− | |||
बन्द तुम कान मुँह कभी न करो। | बन्द तुम कान मुँह कभी न करो। | ||
− | दम अगर तोड़ना | + | दम अगर तोड़ना पड़े हीगा। |
− | + | ||
किस लिए तो बिचार को छोड़ें। | किस लिए तो बिचार को छोड़ें। | ||
− | |||
क्यों बड़े ही हरामियों का सिर। | क्यों बड़े ही हरामियों का सिर। | ||
− | |||
तोड़ते तोड़ते न दम तोड़ें। | तोड़ते तोड़ते न दम तोड़ें। | ||
घोंटते जो लोग हैं उस का गला। | घोंटते जो लोग हैं उस का गला। | ||
− | |||
क्यों नहीं उन का लहू हम गार लें। | क्यों नहीं उन का लहू हम गार लें। | ||
− | |||
है हमारी जाति का दम घुट रहा। | है हमारी जाति का दम घुट रहा। | ||
− | |||
हम भला दम किस तरह से मार लें। | हम भला दम किस तरह से मार लें। | ||
धूल में मरदानगी अपनी मिला। | धूल में मरदानगी अपनी मिला। | ||
− | |||
लात हिम्मत को लगा जीते मरें। | लात हिम्मत को लगा जीते मरें। | ||
− | + | है अगर हम में न कुछ दम रह गया। | |
− | है अगर हम में न | + | |
− | + | ||
तो भरोसा और के दम का करें। | तो भरोसा और के दम का करें। | ||
टूट जावे मगर न खुल पावे। | टूट जावे मगर न खुल पावे। | ||
− | |||
इस तरह से कमर कसें बाँधों। | इस तरह से कमर कसें बाँधों। | ||
− | + | जाति का काम साधती बेला। | |
− | जाति का काम | + | |
− | + | ||
दम निकल जाय पर न दम साधों। | दम निकल जाय पर न दम साधों। | ||
छोड़ दें पेचपाच की आदत। | छोड़ दें पेचपाच की आदत। | ||
− | |||
बीच का खींचतान कर दें कम। | बीच का खींचतान कर दें कम। | ||
− | |||
तोड़ कर औ मरोड़ कर बातें। | तोड़ कर औ मरोड़ कर बातें। | ||
− | |||
जाति का क्यों गला मरोड़ें हम। | जाति का क्यों गला मरोड़ें हम। | ||
है कसर कौन सी नहीं हम में। | है कसर कौन सी नहीं हम में। | ||
− | |||
है भला कौन इस तरह लुटता। | है भला कौन इस तरह लुटता। | ||
− | |||
जब हमीं घोट घोट देते हैं। | जब हमीं घोट घोट देते हैं। | ||
− | |||
तब गला जाति का न क्यों घुटता। | तब गला जाति का न क्यों घुटता। | ||
जो उन्हें गोद में नहीं लेते। | जो उन्हें गोद में नहीं लेते। | ||
− | |||
जो गले से नहीं लगाते हो। | जो गले से नहीं लगाते हो। | ||
− | |||
बेबसों पर छुरी चला कर के। | बेबसों पर छुरी चला कर के। | ||
− | |||
क्यों गले पर छुरी चलाते हो। | क्यों गले पर छुरी चलाते हो। | ||
जो निबाहो नेह के नाते न तुम। | जो निबाहो नेह के नाते न तुम। | ||
− | |||
जो न रोटी बाँट कर खाओ जुरी। | जो न रोटी बाँट कर खाओ जुरी। | ||
− | |||
तो छुरी बेढंग आपस में चला। | तो छुरी बेढंग आपस में चला। | ||
− | |||
मत गले पर जाति के फेरो छुरी। | मत गले पर जाति के फेरो छुरी। | ||
जो पिलाते बन सके तो दो पिला। | जो पिलाते बन सके तो दो पिला। | ||
− | |||
वह निराला जल की जिस से हो भला। | वह निराला जल की जिस से हो भला। | ||
− | |||
प्यास सुख की बेतरह है बढ़ गई। | प्यास सुख की बेतरह है बढ़ गई। | ||
− | |||
आस का है सूखता जाता गला। | आस का है सूखता जाता गला। | ||
तब भला किस तरह बसेंगे हम। | तब भला किस तरह बसेंगे हम। | ||
− | |||
जब कि होवे न देस ही बसता। | जब कि होवे न देस ही बसता। | ||
− | |||
तब हमारा गला फँसेगा ही। | तब हमारा गला फँसेगा ही। | ||
− | |||
जब कि है जाति का गला फँसता। | जब कि है जाति का गला फँसता। | ||
मौत का जो पयाम लाती है। | मौत का जो पयाम लाती है। | ||
− | |||
क्या न है आ रही वही खाँसी। | क्या न है आ रही वही खाँसी। | ||
− | + | जब गले फँस गये कुफंदे में। | |
− | जब गले फँस गये | + | |
− | + | ||
क्या गले में न तब लगी फाँसी। | क्या गले में न तब लगी फाँसी। | ||
− | चाहिए | + | चाहिए कुछ दबंगपन रखना। |
− | + | ||
दब बहुत दाब में न आयें हम। | दब बहुत दाब में न आयें हम। | ||
− | |||
बेसबब दबदबा गँवा अपना। | बेसबब दबदबा गँवा अपना। | ||
− | |||
जाति का क्यों गला दबायें हम। | जाति का क्यों गला दबायें हम। | ||
− | हैं बुरे | + | हैं बुरे फ़ंद बहुत फ़ैले हुए। |
− | + | ||
जाल कितने बिछ गये हैं बरमला। | जाल कितने बिछ गये हैं बरमला। | ||
− | + | बेतरह तुम आप भी फँस जाओगे। | |
− | बेतरह तुम आप भी फँस | + | |
− | + | ||
जाति का हो क्यों फँसा देते गला। | जाति का हो क्यों फँसा देते गला। | ||
बात है यह बहुत बड़े दुख की। | बात है यह बहुत बड़े दुख की। | ||
− | |||
हम अगर बेतरह कभी बढ़ दें। | हम अगर बेतरह कभी बढ़ दें। | ||
− | + | कूढ़पन बात बात में दिखला। | |
− | + | ||
− | + | ||
मूढ़पन जाति के गले मढ़ दें। | मूढ़पन जाति के गले मढ़ दें। | ||
सोच सामान अब करो सुख का। | सोच सामान अब करो सुख का। | ||
− | |||
दुख बहुत दिन तलक रहे चिमट। | दुख बहुत दिन तलक रहे चिमट। | ||
− | |||
गा चलो गीत जाति-हित के अब। | गा चलो गीत जाति-हित के अब। | ||
− | + | गा चुके कम न दादरे खेमटे। | |
− | गा | + | |
फिर भला किस तरह हमारी रुचि। | फिर भला किस तरह हमारी रुचि। | ||
− | |||
देश-हित राग रंग में रँगती। | देश-हित राग रंग में रँगती। | ||
− | |||
सावनी है सुहावनी होती। | सावनी है सुहावनी होती। | ||
− | |||
लावनी है लुभावनी लगती। | लावनी है लुभावनी लगती। | ||
जाति-हित के बड़े अनूठे पद। | जाति-हित के बड़े अनूठे पद। | ||
− | |||
हम बड़ी ही उमंग से गावें। | हम बड़ी ही उमंग से गावें। | ||
− | |||
अब बहुत ही बुरी ठसकवाली। | अब बहुत ही बुरी ठसकवाली। | ||
− | |||
ठुमरियों की न ठोकरें खावें। | ठुमरियों की न ठोकरें खावें। | ||
क्यों जगाये भी नहीं हो जागते। | क्यों जगाये भी नहीं हो जागते। | ||
− | |||
आज दिन सारा जगत है जग गया। | आज दिन सारा जगत है जग गया। | ||
− | |||
लाग से ही जाति-हित गाड़ी खिंचे। | लाग से ही जाति-हित गाड़ी खिंचे। | ||
− | |||
लग गया कंधा बला से लग गया। | लग गया कंधा बला से लग गया। | ||
क्यों कसकती नहीं कसक जी की। | क्यों कसकती नहीं कसक जी की। | ||
− | |||
क्यों खली आज भी न कोर कसर। | क्यों खली आज भी न कोर कसर। | ||
− | |||
है बुरी चाट लग गई तो क्या। | है बुरी चाट लग गई तो क्या। | ||
− | |||
अब रहें नाचते न चुटकी पर। | अब रहें नाचते न चुटकी पर। | ||
चूकते ही चूकते तो सब गया। | चूकते ही चूकते तो सब गया। | ||
− | |||
चूक कर खोना न अब घर चाहिण्। | चूक कर खोना न अब घर चाहिण्। | ||
− | |||
नटखटों की चाट, जी की चोट को। | नटखटों की चाट, जी की चोट को। | ||
− | |||
क्या उड़ाना चुटकियों पर चाहिए। | क्या उड़ाना चुटकियों पर चाहिए। | ||
जाति का काम हम किये जावें। | जाति का काम हम किये जावें। | ||
− | |||
क्यों लहू से न बार बार सिंचें। | क्यों लहू से न बार बार सिंचें। | ||
− | |||
बिन गये बाल बाल भी न हटें। | बिन गये बाल बाल भी न हटें। | ||
− | |||
खिंच गये खाल भी न हाथ खिंचे। | खिंच गये खाल भी न हाथ खिंचे। | ||
हो सका क्या न हौसला बाँधो। | हो सका क्या न हौसला बाँधो। | ||
− | |||
जग गये, कौन सा न भाग जगा। | जग गये, कौन सा न भाग जगा। | ||
− | |||
कस कमर कौन काम कर न सके। | कस कमर कौन काम कर न सके। | ||
− | |||
लग गये लाग क्या न हाथ लगा। | लग गये लाग क्या न हाथ लगा। | ||
जाति-हित क्यारियाँ लगे हाथों। | जाति-हित क्यारियाँ लगे हाथों। | ||
− | |||
क्यों नहीं आप सींच लेते हैं। | क्यों नहीं आप सींच लेते हैं। | ||
− | + | चाहिए इस तरह न खिंच जाना। | |
− | चाहिए इस तरह न | + | |
− | + | ||
किस लिए हाथ खींच लेते हैं। | किस लिए हाथ खींच लेते हैं। | ||
जाँय कीलें सकल नँहों में गड़। | जाँय कीलें सकल नँहों में गड़। | ||
− | |||
जाति-हित हौसले न हट पावें। | जाति-हित हौसले न हट पावें। | ||
− | |||
हाथ लट जाय, शल हथेली हो। | हाथ लट जाय, शल हथेली हो। | ||
− | |||
उँगलियाँ पोर पोर कट जावें। | उँगलियाँ पोर पोर कट जावें। | ||
कौर मुँह का क्यों न तब छिन जायगा। | कौर मुँह का क्यों न तब छिन जायगा। | ||
− | |||
जाँयगी पच क्यों न प्यारी थातियाँ। | जाँयगी पच क्यों न प्यारी थातियाँ। | ||
− | |||
पेट कटता देख जब रो पीट कर। | पेट कटता देख जब रो पीट कर। | ||
− | |||
लोग पीटा ही करेंगे छातियाँ। | लोग पीटा ही करेंगे छातियाँ। | ||
कढ़ रही हैं तो कढ़ें चिनगारियाँ। | कढ़ रही हैं तो कढ़ें चिनगारियाँ। | ||
− | |||
अब न आँखें नीर बरसाती रहें। | अब न आँखें नीर बरसाती रहें। | ||
− | + | कूटते हैं तो बदों को कूट दें। | |
− | + | कट मरें, क्यों कूटते छाती रहें। | |
− | + | ||
− | कट मरें, क्यों | + | |
हौसले और दबदबे वाला। | हौसले और दबदबे वाला। | ||
− | |||
क्या नहीं है दबंग बन पाता। | क्या नहीं है दबंग बन पाता। | ||
− | |||
हम किसी की न दाब में आयें। | हम किसी की न दाब में आयें। | ||
− | |||
दिल दबे कौन दब नहीं जाता। | दिल दबे कौन दब नहीं जाता। | ||
आज दिन तो दौड़ ही की होड़ है। | आज दिन तो दौड़ ही की होड़ है। | ||
− | |||
फिर हमें है दौड़ने में कौन डर। | फिर हमें है दौड़ने में कौन डर। | ||
− | |||
क्या निगाहें भी नहीं हैं दौड़तीं। | क्या निगाहें भी नहीं हैं दौड़तीं। | ||
− | + | दौड़ता है दिल न दौड़ाये अगर। | |
− | दौड़ता है दिल न दौड़ाये | + | |
माल निगला क्यों उगलवा लें न हम। | माल निगला क्यों उगलवा लें न हम। | ||
− | + | है हमें कुछ कम न टोटा हो रहा। | |
− | है हमें | + | |
− | + | ||
जो निकल पावे निकालें पेट से। | जो निकल पावे निकालें पेट से। | ||
− | |||
दिन ब दिन है पेट मोटा हो रहा। | दिन ब दिन है पेट मोटा हो रहा। | ||
कौड़ियाँ पैसे हमारे क्यों लुटें। | कौड़ियाँ पैसे हमारे क्यों लुटें। | ||
− | + | वे रहें कैसे किसी की टेंट में। | |
− | वे रहें | + | |
− | + | ||
लें उगलवा माल पकड़ें फेंट हम। | लें उगलवा माल पकड़ें फेंट हम। | ||
− | |||
पेट में है तो रहे क्यों पेट में। | पेट में है तो रहे क्यों पेट में। | ||
दुख न भोगें उखाड़ दें उस को। | दुख न भोगें उखाड़ दें उस को। | ||
− | |||
है अगर जम गया हिला डालें। | है अगर जम गया हिला डालें। | ||
− | |||
लाभ क्या टालटूल से होगा। | लाभ क्या टालटूल से होगा। | ||
− | |||
जो सकें टाल पाँव को टालें। | जो सकें टाल पाँव को टालें। | ||
नाक रगड़े मिटें नहीं रगड़े। | नाक रगड़े मिटें नहीं रगड़े। | ||
− | |||
माथ क्या पाँव पर रगड़ करते। | माथ क्या पाँव पर रगड़ करते। | ||
− | |||
दो रगड़ जो रगड़ सको खल को। | दो रगड़ जो रगड़ सको खल को। | ||
− | |||
पाँव क्या हो रगड़ रगड़ मरते। | पाँव क्या हो रगड़ रगड़ मरते। | ||
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09:42, 20 मार्च 2014 के समय का अवतरण
पिस रहा है आज हिन्दूपन बहुत।
हिन्दुओं में हैं बुरी रुचियाँ जगीं।
ऐ सपूतो, तुम सपूती मत तजो।
हैं तुम्हारी ओर ही आँखें लगीं।
हो गया है क्या, समझ पड़ता नहीं।
हिन्दुओ, ऐसी नहीं देखी कहीं।
खोल कर के खोलने वाले थके।
है तुमारी आँख खुलती ही नहीं।
हिन्दुओ, जैसी तुम्हारी है बनी।
बेबसी ऐसी बनी किस की सगी।
जागने पर जो लगी ही सी रही।
कब किसी की आँख ऐसी है लगी।
देख कर बेचारपन से तंग को।
आप तुम बेचारपन से मत घिरो।
हो बचा सकते उन्हें तो लो बचा।
हिन्दुओ, आँखें बचाते मत फिरो।
छीजते ही जा रहे हो हिन्दुओ।
भाइयों को पाँव से अपने मसल।
है उसी का मिल रह बदला तुम्हें।
बेतरह आँखें गई हैं क्यों बदल।
हिन्दुओ, हाथ पाँव के होते।
जब कि है बेबसी तुम्हें भाती।
तो भला क्यों न फेर में पड़ते।
दैव की आँख क्यों न फिर जाती।
फल फले बैर फूट के जिस में।
दूध से बेलि वह गई सींची।
देख कर नीचपन तुम्हारा यह।
हिन्दुओ, आँख हो गई नीची।
सब जगह बे-जागतों को भी जगा।
आज दिन जो जोत जगती है नई।
तब भला कैसे हमारे दिन फिरें।
जब हमारी दीठ उस से फिर गई।
है अगर जीना जियें जीवट दिखा।
या कि अब हम मौत कुत्तो की मरें।
पिट गये जितना कि पिट सकते रहे।
अब भला रो पीट कर के क्या करें।
सूझता है न क्या है हो रहा।
और लम्बी तान कर हैं सो रहे।
हाथ धोना सब सुखों से ही पड़ा।
क्या अजब जो आज हैं रो धो रहे।
थे समझते जाति-हित-रुचि-बेलि को।
कर सकेंगे हम हरी आँसू चुआ।
वह पनपने भी अगर पाई नहीं।
कुछ न तो रोने कलपने से हुआ।
जी लगा जाति के सुनो दुखड़े।
सच्च कहते हुए डिगो न डरो।
एक क्या लाख जोड़बन्द लगे।
बन्द तुम कान मुँह कभी न करो।
दम अगर तोड़ना पड़े हीगा।
किस लिए तो बिचार को छोड़ें।
क्यों बड़े ही हरामियों का सिर।
तोड़ते तोड़ते न दम तोड़ें।
घोंटते जो लोग हैं उस का गला।
क्यों नहीं उन का लहू हम गार लें।
है हमारी जाति का दम घुट रहा।
हम भला दम किस तरह से मार लें।
धूल में मरदानगी अपनी मिला।
लात हिम्मत को लगा जीते मरें।
है अगर हम में न कुछ दम रह गया।
तो भरोसा और के दम का करें।
टूट जावे मगर न खुल पावे।
इस तरह से कमर कसें बाँधों।
जाति का काम साधती बेला।
दम निकल जाय पर न दम साधों।
छोड़ दें पेचपाच की आदत।
बीच का खींचतान कर दें कम।
तोड़ कर औ मरोड़ कर बातें।
जाति का क्यों गला मरोड़ें हम।
है कसर कौन सी नहीं हम में।
है भला कौन इस तरह लुटता।
जब हमीं घोट घोट देते हैं।
तब गला जाति का न क्यों घुटता।
जो उन्हें गोद में नहीं लेते।
जो गले से नहीं लगाते हो।
बेबसों पर छुरी चला कर के।
क्यों गले पर छुरी चलाते हो।
जो निबाहो नेह के नाते न तुम।
जो न रोटी बाँट कर खाओ जुरी।
तो छुरी बेढंग आपस में चला।
मत गले पर जाति के फेरो छुरी।
जो पिलाते बन सके तो दो पिला।
वह निराला जल की जिस से हो भला।
प्यास सुख की बेतरह है बढ़ गई।
आस का है सूखता जाता गला।
तब भला किस तरह बसेंगे हम।
जब कि होवे न देस ही बसता।
तब हमारा गला फँसेगा ही।
जब कि है जाति का गला फँसता।
मौत का जो पयाम लाती है।
क्या न है आ रही वही खाँसी।
जब गले फँस गये कुफंदे में।
क्या गले में न तब लगी फाँसी।
चाहिए कुछ दबंगपन रखना।
दब बहुत दाब में न आयें हम।
बेसबब दबदबा गँवा अपना।
जाति का क्यों गला दबायें हम।
हैं बुरे फ़ंद बहुत फ़ैले हुए।
जाल कितने बिछ गये हैं बरमला।
बेतरह तुम आप भी फँस जाओगे।
जाति का हो क्यों फँसा देते गला।
बात है यह बहुत बड़े दुख की।
हम अगर बेतरह कभी बढ़ दें।
कूढ़पन बात बात में दिखला।
मूढ़पन जाति के गले मढ़ दें।
सोच सामान अब करो सुख का।
दुख बहुत दिन तलक रहे चिमट।
गा चलो गीत जाति-हित के अब।
गा चुके कम न दादरे खेमटे।
फिर भला किस तरह हमारी रुचि।
देश-हित राग रंग में रँगती।
सावनी है सुहावनी होती।
लावनी है लुभावनी लगती।
जाति-हित के बड़े अनूठे पद।
हम बड़ी ही उमंग से गावें।
अब बहुत ही बुरी ठसकवाली।
ठुमरियों की न ठोकरें खावें।
क्यों जगाये भी नहीं हो जागते।
आज दिन सारा जगत है जग गया।
लाग से ही जाति-हित गाड़ी खिंचे।
लग गया कंधा बला से लग गया।
क्यों कसकती नहीं कसक जी की।
क्यों खली आज भी न कोर कसर।
है बुरी चाट लग गई तो क्या।
अब रहें नाचते न चुटकी पर।
चूकते ही चूकते तो सब गया।
चूक कर खोना न अब घर चाहिण्।
नटखटों की चाट, जी की चोट को।
क्या उड़ाना चुटकियों पर चाहिए।
जाति का काम हम किये जावें।
क्यों लहू से न बार बार सिंचें।
बिन गये बाल बाल भी न हटें।
खिंच गये खाल भी न हाथ खिंचे।
हो सका क्या न हौसला बाँधो।
जग गये, कौन सा न भाग जगा।
कस कमर कौन काम कर न सके।
लग गये लाग क्या न हाथ लगा।
जाति-हित क्यारियाँ लगे हाथों।
क्यों नहीं आप सींच लेते हैं।
चाहिए इस तरह न खिंच जाना।
किस लिए हाथ खींच लेते हैं।
जाँय कीलें सकल नँहों में गड़।
जाति-हित हौसले न हट पावें।
हाथ लट जाय, शल हथेली हो।
उँगलियाँ पोर पोर कट जावें।
कौर मुँह का क्यों न तब छिन जायगा।
जाँयगी पच क्यों न प्यारी थातियाँ।
पेट कटता देख जब रो पीट कर।
लोग पीटा ही करेंगे छातियाँ।
कढ़ रही हैं तो कढ़ें चिनगारियाँ।
अब न आँखें नीर बरसाती रहें।
कूटते हैं तो बदों को कूट दें।
कट मरें, क्यों कूटते छाती रहें।
हौसले और दबदबे वाला।
क्या नहीं है दबंग बन पाता।
हम किसी की न दाब में आयें।
दिल दबे कौन दब नहीं जाता।
आज दिन तो दौड़ ही की होड़ है।
फिर हमें है दौड़ने में कौन डर।
क्या निगाहें भी नहीं हैं दौड़तीं।
दौड़ता है दिल न दौड़ाये अगर।
माल निगला क्यों उगलवा लें न हम।
है हमें कुछ कम न टोटा हो रहा।
जो निकल पावे निकालें पेट से।
दिन ब दिन है पेट मोटा हो रहा।
कौड़ियाँ पैसे हमारे क्यों लुटें।
वे रहें कैसे किसी की टेंट में।
लें उगलवा माल पकड़ें फेंट हम।
पेट में है तो रहे क्यों पेट में।
दुख न भोगें उखाड़ दें उस को।
है अगर जम गया हिला डालें।
लाभ क्या टालटूल से होगा।
जो सकें टाल पाँव को टालें।
नाक रगड़े मिटें नहीं रगड़े।
माथ क्या पाँव पर रगड़ करते।
दो रगड़ जो रगड़ सको खल को।
पाँव क्या हो रगड़ रगड़ मरते।