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− | ब्याह के | + | ब्याह के आयी तब लाल गुलाब थीं |
− | जल्द ही पीला कनेर हो | + | जल्द ही पीला कनेर हो गयी चाची |
− | घर भर को | + | घर भर को पसन्द था |
उनके हाथ का सुस्वाद भोजन | उनके हाथ का सुस्वाद भोजन | ||
− | + | कढ़ाई-बुनाई-सिलाई | |
− | + | सलीका-तरीका | |
− | + | बोली-बानी | |
− | + | बात-व्यवहार | |
− | + | नापसन्द कि दहेज कम लायी थी चाची। | |
− | + | जाड़े की रातों में ठण्डे पानी से नहातीं | |
− | जाड़े की | + | |
झीनी साड़ी पहनतीं | झीनी साड़ी पहनतीं | ||
− | + | गूँज रहे होते जब कमरे में | |
चाचा के खर्राटे | चाचा के खर्राटे | ||
बेचैनी से बरामदे में टहलतीं | बेचैनी से बरामदे में टहलतीं | ||
− | जाने किस आग में | + | जाने किस आग में जलती थीं चाची। |
− | + | चाचा जब गये विदेश | |
− | चाचा जब | + | |
एक हरा आदमी उनसे मिलने आया | एक हरा आदमी उनसे मिलने आया | ||
− | + | बचपन का साथी है-कहकर जब वे मुस्कुरायीं | |
− | मुझे बिहारी की नायिका नजर | + | मुझे बिहारी की नायिका नजर आयीं चाची |
उस दिन से चाची हरी होती गयीं | उस दिन से चाची हरी होती गयीं | ||
− | दोनों सुग्गा-सुग्गी बन | + | दोनों सुग्गा-सुग्गी बन गये |
− | + | पर जिस दिन लौटे चाचा नीली नज़र आयीं चाची | |
− | पर जिस दिन लौटे चाचा | + | सोची हूँ काश, मैं दे सकती पंख |
− | नीली | + | खोल सकती खिड़की दरवाजे |
− | + | उड़ा सकती सुग्गी को सुग्गे के पास। | |
− | खोल सकती खिड़की | + | |
− | उड़ा सकती सुग्गी को सुग्गे के | + | |
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23:36, 7 दिसम्बर 2015 के समय का अवतरण
ब्याह के आयी तब लाल गुलाब थीं
जल्द ही पीला कनेर हो गयी चाची
घर भर को पसन्द था
उनके हाथ का सुस्वाद भोजन
कढ़ाई-बुनाई-सिलाई
सलीका-तरीका
बोली-बानी
बात-व्यवहार
नापसन्द कि दहेज कम लायी थी चाची।
जाड़े की रातों में ठण्डे पानी से नहातीं
झीनी साड़ी पहनतीं
गूँज रहे होते जब कमरे में
चाचा के खर्राटे
बेचैनी से बरामदे में टहलतीं
जाने किस आग में जलती थीं चाची।
चाचा जब गये विदेश
एक हरा आदमी उनसे मिलने आया
बचपन का साथी है-कहकर जब वे मुस्कुरायीं
मुझे बिहारी की नायिका नजर आयीं चाची
उस दिन से चाची हरी होती गयीं
दोनों सुग्गा-सुग्गी बन गये
पर जिस दिन लौटे चाचा नीली नज़र आयीं चाची
सोची हूँ काश, मैं दे सकती पंख
खोल सकती खिड़की दरवाजे
उड़ा सकती सुग्गी को सुग्गे के पास।