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बाबा गोरखनाथ महायोगी हैँ--८४ सिध्धोँ मेँ जिनकी गणना है, उनका जन्म सँभवत,
 
बाबा गोरखनाथ महायोगी हैँ--८४ सिध्धोँ मेँ जिनकी गणना है, उनका जन्म सँभवत,

23:43, 17 मार्च 2009 का अवतरण

परिचय

बाबा गोरखनाथ महायोगी हैँ--८४ सिध्धोँ मेँ जिनकी गणना है, उनका जन्म सँभवत, विक्रमकी पहली शती मेँ या कि, ९वीँ या ११ वीँ शताब्दि मेँ माना जाता है. दर्शन के क्षेत्र मेँ वेद व्यास, वेदान्त रहस्य के उद्घाटन मेँ,आचार्य शँकर, योग के क्षेत्र मेँ पतँजलि तो गोरखनाथ ने हठयोग व सत्यमय शिव स्वरूप का बोध सिध्ध किया .कहा जाता है कि, गोरखनाथ ने एक बार अवध देश मेँ एक गरीब ब्राह्मणी को पुत्र - प्राप्ति का आशिष दिया भभूति दी जिसे उस स्त्री ने, गोबर के ढेरे मेँ छिपा दीया !

-- १२ वर्ष बाद उसे आमँत्रित करके, एक तेज -पूर्ण बालक को गुरु मत्स्येन्द्रनाथ ने जीवन दान दीया -- गोरख नाथ नाम रखा, अपना शिष्य बानाया -- आगे चलकर कुण्डलिनी शक्ति को शिव मेँ स्थापित करके, मन, वायु या बिन्दु मेँ से किसी एक को भी वश करने पर सिध्धीयाँ मिलने लगतीँ हैँ यह गोरखनाथ ने साबित किया.

हठयोग से, ज्ञान, कर्म व भक्ति, यज्ञ, जप व तप के समन्वय से भारतीय अध्यात्मजीवनको समृध्ध किया --

गोरखनाथ से ही राँझा ने, झेलम नदी के किनारे , योग की दीक्षा ली थी

-- झेलम नदी की मँझधार मेँ हीर व राँझा डूब कर अद्रश्य हो गये थे !

मेवाड के बापा रावल को गोरखनाथ ने एक तलवार भेँट की थी जिसके बल से ही जीत कर, चितौड राज्य की स्थापना हुई थी

पुस्तक

गोरक्ष गीता, गोरक्ष सहस्त्र नाम, गोरक्ष कल्प, गोरक्ष~ सँहिता, ज्ञानामृतयोग, नाडीशास्त्र, प्रदीपिका, श्रीनाथसूस्त्र,हठयोग, योगमार्तण्ड, प्राणसाँकली, १५ तिथि, दयाबोध इत्यादी

---" पवन ही जोग, पवन ही भोग, पवन इ हरै, छतीसौ रोग, या पवन कोई जाणे भव्, सो आपे करता, आपे दैव! ग्यान सरीखा गिरु ना मिलिया, चित्त सरीखा चेला, मन सरीखा मेलु ना मिलिया, ताथै, गोरख फिरै, अकेला !"

कायागढ भीतर नव लख खाई, दसवेँ द्वार अवधू ताली लाई ! कायागढ भीतर देव देहुरा कासी, सहज सुभाइ मिले अवनासी ! बदन्त गोरखनाथ सुणौ,नर लोइ, कायागढ जीतेगा बिरला नर कोई !