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अचार की बरनी ‘कठिन समय है! कठिन समय!!’जिसके ढक्कन पर कसा हुआ था कपड़ा बुदबुदाता कविउठ बैठता आधी रातलेकर कलम-दवात
ललचाता मन कि भक्क से जल उठता लैम्पएक फाँक स्वाद भरी रख लें मुँह रोशनी के वृत्त में की कोशिश पर पारा अम्माँ का सातवें आसमान पर संचारी भाव स्थायी रफप सेभन्नाती हुई सुनाती सजा फाँसी बैठने लगते कविता की जो अपील के बाद तब्दील हो जाती कान उमेठ कर चैके से बाहर कर देने तली में.
आम, गोभी, नींबू, गाजर, मिर्च, अदरक और आँवलातय करता है कविफलते हैं मानो बरनीस्थ होने ड्राफ्ट कठिन समय काबुनता है भाषा कठिन समय कीयाद करता किसी कठिन समय कोराई, सरसों, तेल, नमक, मिर्च तय करता अनुपातबिम्ब और हींगतर्कजटिलता-सिरके सम्प्रेषणका वह अभ्यस्त अनुपातबचाए रखता स्वाद बरनी की तली दिखने तक . मौलिकता-दोहराव के
सख्त कायदे‘कठिन समय -कानून हैं इनके डालने और कठिन समय’महप़फूज़ रखने के बुदबुदाता कवि तय करतागंदे-संदेअपने सम्पादक, झूठे-सकरे हाथोंआलोचक और पाठकऔर बहूचोर-बेटियों को उन चार दिनों दरवाजे भीबरनी न छूने देने से ही बचा रहता है अम्माँ का यह अनोखा स्वाद-संसार! किसी कठिन समय पर भागने के लिये
सरल-सहज चीजों का जटिलतम मिश्रण फिलहालसब्जी-दाल जबकि सारे जाहिल लोगथक कर सोये हैंनींद से भरी थाली के कोने में लड़ता कविरसीली और चटपटी फांक की शक्ल में लिखता एक आसान-सी कवितापरोस दी जाती है घर की विरासत! कठिन समय पर
चैके में करीने से रखी प्रिय पाठक!ये मौलिक, अप्रकाशित, अप्रसारित कृतियाँकेवल जायके का बदलाव नहीं भरोसा सचमुच कठिन समय है मध्य वर्ग का यहकि न हो सब्जी घर में भले ही आ सकता है कोई भी आधी रात! कविता के लिये
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