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"दुख के कितने पर्वत चढ़ने / ब्रजमोहन" के अवतरणों में अंतर
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दुख के कितने पर्वत चढ़ने होंगे अभी और रे | दुख के कितने पर्वत चढ़ने होंगे अभी और रे | ||
− | + | रात के अँधेरों में छिपी है कहाँ भोर रे... | |
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चलते-चलते राह मिली न चाह मिली न छाँव | चलते-चलते राह मिली न चाह मिली न छाँव | ||
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उम्मीदें पत्तों-सी टूटीं, पीछे छूटे पाँव | उम्मीदें पत्तों-सी टूटीं, पीछे छूटे पाँव | ||
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टूटी न फिर भी कैसे जीवन की डोर रे... | टूटी न फिर भी कैसे जीवन की डोर रे... | ||
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सूरज जलता धरती जलती जलता है आकाश | सूरज जलता धरती जलती जलता है आकाश | ||
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तेरा-मेरा जीवन पीकर बुझती किसकी प्यास | तेरा-मेरा जीवन पीकर बुझती किसकी प्यास | ||
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हँसते हैं किस पे काली दुनिया के चोर रे... | हँसते हैं किस पे काली दुनिया के चोर रे... | ||
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कितने सागर कितनी नदियाँ कितने तूफ़ाँ बाक़ी | कितने सागर कितनी नदियाँ कितने तूफ़ाँ बाक़ी | ||
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कितने सपने कितनी चाहें कितने अरमाँ बाक़ी | कितने सपने कितनी चाहें कितने अरमाँ बाक़ी | ||
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नाचेंगे किस बारिश में मन के सब मोर रे... | नाचेंगे किस बारिश में मन के सब मोर रे... | ||
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12:52, 19 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण
दुख के कितने पर्वत चढ़ने होंगे अभी और रे
रात के अँधेरों में छिपी है कहाँ भोर रे...
चलते-चलते राह मिली न चाह मिली न छाँव
उम्मीदें पत्तों-सी टूटीं, पीछे छूटे पाँव
टूटी न फिर भी कैसे जीवन की डोर रे...
सूरज जलता धरती जलती जलता है आकाश
तेरा-मेरा जीवन पीकर बुझती किसकी प्यास
हँसते हैं किस पे काली दुनिया के चोर रे...
कितने सागर कितनी नदियाँ कितने तूफ़ाँ बाक़ी
कितने सपने कितनी चाहें कितने अरमाँ बाक़ी
नाचेंगे किस बारिश में मन के सब मोर रे...