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"माधवजू जो जन तैं बिगरै / सूरदास" के अवतरणों में अंतर

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छमि सब लोभ जु छांड़ि छवौ रस लै समीप संचरै॥
 
छमि सब लोभ जु छांड़ि छवौ रस लै समीप संचरै॥
 
करुना करन दयाल दयानिधि निज भय दीन डर।
 
करुना करन दयाल दयानिधि निज भय दीन डर।
इहिं कलिकाल व्याल मुख ग्रासित सूर सरन उबरे॥१२॥
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इहिं कलिकाल व्याल मुख ग्रासित सूर सरन उबरे॥
 
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18:56, 21 मई 2014 के समय का अवतरण

माधवजू जो जन तैं बिगरै।
तौ कृपाल करुनामय केसव प्रभु नहिं जीय धर॥
जैसें जननि जठर अन्तरगत सुत अपराध करै।
तो जतन करै अरु पोषे निकसैं अंक भरै॥
जद्यपि मलय बृच्छ जड़ काटै कर कुठार पकरै।
त सुभाव सुगंध सुशीतल रिपु तन ताप हरै॥
धर विधंसि नल करत किरसि हल बारि बांज बिधरै।
सहि सनमुख तौ सीत उष्ण कों सो सफल करै॥
रसना द्विज दलि दुखित होति बहु तौ रिस कहा करै।
छमि सब लोभ जु छांड़ि छवौ रस लै समीप संचरै॥
करुना करन दयाल दयानिधि निज भय दीन डर।
इहिं कलिकाल व्याल मुख ग्रासित सूर सरन उबरे॥