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किन्हीं सरपरस्तों के दम पर फूली फैलीं<br> | किन्हीं सरपरस्तों के दम पर फूली फैलीं<br> | ||
− | अगरधत्त जंगल लताएं !<br> | + | अगरधत्त जंगल लताएं!<br> |
खाती-पीती, सुख से ऊबी<br> | खाती-पीती, सुख से ऊबी<br> | ||
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फिर, ये उन्होंने थोड़े ही लिखीं हैं।’<br> | फिर, ये उन्होंने थोड़े ही लिखीं हैं।’<br> | ||
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− | + | बाक़ी कहानी बस कनखी है।<br><br> | |
हे परमपिताओं,<br> | हे परमपिताओं,<br> | ||
परमपुरुषों–<br> | परमपुरुषों–<br> | ||
− | बख्शो, बख्शो, अब हमें बख्शो !<br><br> | + | बख्शो, बख्शो, अब हमें बख्शो!<br><br> |
17:29, 2 मई 2008 का अवतरण
पढ़ा गया हमको
जैसे पढ़ा जाता है काग़ज
बच्चों की फटी कॉपियों का
‘चनाजोरगरम’ के लिफ़ाफ़े के बनने से पहले!
देखा गया हमको
जैसे कि कुफ्त हो उनींदे
देखी जाती है कलाई घड़ी
अलस्सुबह अलार्म बजने के बाद !
सुना गया हमको
यों ही उड़ते मन से
जैसे सुने जाते हैं फ़िल्मी गाने
सस्ते कैसेटों पर
ठसाठस्स ठुंसी हुई बस में !
भोगा गया हमको
बहुत दूर के रिश्तेदारों के दुख की तरह
एक दिन हमने कहा–
हम भी इंसान हैं
हमें क़ायदे से पढ़ो एक-एक अक्षर
जैसे पढ़ा होगा बी.ए. के बाद
नौकरी का पहला विज्ञापन।
देखो तो ऐसे
जैसे कि ठिठुरते हुए देखी जाती है
बहुत दूर जलती हुई आग।
सुनो, हमें अनहद की तरह
और समझो जैसे समझी जाती है
नई-नई सीखी हुई भाषा।
इतना सुनना था कि अधर में लटकती हुई
एक अदृश्य टहनी से
टिड्डियाँ उड़ीं और रंगीन अफ़वाहें
चींखती हुई चीं-चीं
‘दुश्चरित्र महिलाएं, दुश्चरित्र महिलाएं–
किन्हीं सरपरस्तों के दम पर फूली फैलीं
अगरधत्त जंगल लताएं!
खाती-पीती, सुख से ऊबी
और बेकार बेचैन, अवारा महिलाओं का ही
शग़ल हैं ये कहानियाँ और कविताएँ।
फिर, ये उन्होंने थोड़े ही लिखीं हैं।’
(कनखियाँ इशारे, फिर कनखी)
बाक़ी कहानी बस कनखी है।
हे परमपिताओं,
परमपुरुषों–
बख्शो, बख्शो, अब हमें बख्शो!