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18:21, 13 जनवरी 2008 के समय का अवतरण
कोई भी नहीं दे सकता
तुम्हें ज़िन्दगी
सिवाय मेरे
बस, मैं ही कर सकता हूँ
असम्भव को सम्भव
मैं एक अदना कवि
लो, देता हूँ तुम्हें ज़िन्दगी
लो, सदियों से मृत तुम्हें
मैं करता हूँ जीवित
सदैव के लिए करता हूँ जीवित
तुम्हें अपनी इस कविता में ।