भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"राष्ट्र देवता / सोम ठाकुर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=
 
}}
 
}}
 +
{{KKCatKavita}}
 +
<poem>
 +
तुझ पर निछावर फूल
 +
केसरिया शीश फूल
 +
ओ देवता! देश के देवता!!
  
तुझ पर निछावर फूल<br>
+
तेरी हथेली उठी,
केसरिया शीश फूल<br>
+
किरणें उगने लगीं,
ओ देवता! देश के देवता!!<br><br>
+
ऋतु हो गई चंपई
 +
दिन की साँसें जगीं,
 +
तू ने दिया रात को
 +
गुलाबी सुबह का पता।
 +
ओ देवता! देश के देवता!!
  
तेरी हथेली उठी,<br>
+
फलने लगा फौलाद
किरणें उगने लगीं,<br>
+
मेहनत की बाँह में,
ऋतु हो गई चंपई<br>
+
उठते हुए तूफ़ान
दिन की साँसें जगीं,<br>
+
तेरे द्वारे थमें,
तू ने दिया रात को<br>
+
संघर्ष की गोद में
गुलाबी सुबह का पता।<br>
+
सदा से सृजन खेलता।
ओ देवता! देश के देवता!!<br><br>
+
ओ देवता! देश के देवता!!
  
फलने लगा फौलाद<br>
+
काल का वसंती मंत्र
मेहनत की बाँह में,<br>
+
पढ़ती हैं पीढ़ियाँ,
उठते हुए तूफ़ान<br>
+
सपने सयाने हुए,
तेरे द्वारे थमें,<br>
+
चढ़ते हैं सीढ़ियाँ
संघर्ष की गोद में<br>
+
संसार बढ़ते हुए
सदा से सृजन खेलता।<br>
+
ओ देवता! देश के देवता!!<br><br>
+
 
+
काल का वसंती मंत्र<br>
+
पढ़ती हैं पीढ़ियाँ,<br>
+
सपने सयाने हुए,<br>
+
चढ़ते हैं सीढ़ियाँ<br>
+
संसार बढ़ते हुए<br>
+
 
तेरे चरण देखता।
 
तेरे चरण देखता।
 +
</poem>

11:24, 24 फ़रवरी 2012 के समय का अवतरण

तुझ पर निछावर फूल
केसरिया शीश फूल
ओ देवता! देश के देवता!!

तेरी हथेली उठी,
किरणें उगने लगीं,
ऋतु हो गई चंपई
दिन की साँसें जगीं,
तू ने दिया रात को
गुलाबी सुबह का पता।
ओ देवता! देश के देवता!!

फलने लगा फौलाद
मेहनत की बाँह में,
उठते हुए तूफ़ान
तेरे द्वारे थमें,
संघर्ष की गोद में
सदा से सृजन खेलता।
ओ देवता! देश के देवता!!

काल का वसंती मंत्र
पढ़ती हैं पीढ़ियाँ,
सपने सयाने हुए,
चढ़ते हैं सीढ़ियाँ
संसार बढ़ते हुए
तेरे चरण देखता।