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दो दर्द को वह स्वर कि जल जाए उदासी का कफ़न
पा जाए फिर से ज़िन्दगी उजड़ा चमन, मुरझा सुमन
हो साफ़-सुथरी हर गली
शबनम बिछा दो मख़मली
जिस पर सफलता की नज़र वह साधना कुन्दन बनी
यश ने जड़े नग इस तरह हो मेदिनी की करघनी
लेकिन मृतक-सा जो यतन
दुर्भाग्य को करता नमन
घबरा न माँझी प्राण के विपरीत यदि तीखा पवन
किसको नहीं इस रात की मँझधार में तट की लगन
आलोक की शमशीर से
काली लहर को चीर दे
असमय न तम भर जाए, अनब्याहे सपन की नाँव में
</poem>
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