भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"डिम्बू टिम के लिए / हेमन्त देवलेकर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हेमन्त देवलेकर |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
पंक्ति 41: पंक्ति 41:
 
काट दी जाएगी
 
काट दी जाएगी
 
और खोल दी जाएँगी तमाम सरहदें
 
और खोल दी जाएँगी तमाम सरहदें
 
  
 
फिर यह पृथ्वी
 
फिर यह पृथ्वी

14:13, 31 अगस्त 2014 के समय का अवतरण

तू अगर फ़ौज में भर्ती हो जाए
तो यक़ीन है कि सारी तोपें
पिचकारियों में बदल जाएँगी

फिर उनसे गोला-बारूद नहीं दाग़ा जाएगा
रंग बरसाए जाएंगे

सरहदों के उस पार
जहाँ गिरेंगे तेरे रंगीले गुब्बारे
ख़ून ख़राबे की आदी हो चुकी धरती
महसूस करेगी अपना नया जन्म होते हुए
फिर दहशत वहाँ कभी नहीं लौटेगी

अब तक के इतिहासों में दर्ज है
पड़ोसी मुल्कों के बीच अक्सर होती
शांति वार्ताएँ,
अक्सर होते शिखर सम्मेलन
और इन महज़ दिखावटी रस्मों के पीछे
छुपा होता है युद्धों का निर्मम चेहरा अक्सर
तंग आ चुकी है दुनिया इस दोगलेपन से
उसे अब और जंग नहीं
तेरे उत्सवदार रंग चाहिये

अब जो इतिहास बने
उसमें ऐसे हुक्मरान हों
जो सरहदों के पार की जनता को भी
अपनी अवाम समझें

तू अगर फ़ौज में भर्ती हो जाए
तो यक़ीन है
सीमाओं पर लगी
कंटीले तारों की बाड़
काट दी जाएगी
और खोल दी जाएँगी तमाम सरहदें

फिर यह पृथ्वी
फिज़ूल टुकड़ों में बँटी नहीं मिलेगी
तब्दील हो चुकी होगी
एक घर-
एक आँगन में.