"पहाड़ : छह कविताएँ / कुमार मुकुल" के अवतरणों में अंतर
Kumar mukul (चर्चा | योगदान) (धुंध सी ये स्मृतियां हैं हमारी हवाएं नहीं कि चीरे चले जाओ) |
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जीवन के विस्तारों में | जीवन के विस्तारों में | ||
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अक्सर याद आते हैं पहाड | अक्सर याद आते हैं पहाड | ||
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कि चाहे वे थकाते बहुत हैं | कि चाहे वे थकाते बहुत हैं | ||
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पर जल्द ही दे देते हैं कोई चोटी | पर जल्द ही दे देते हैं कोई चोटी | ||
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जहां खडे हो | जहां खडे हो | ||
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क्षण भर को | क्षण भर को | ||
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तटस्थ हो सकें हम | तटस्थ हो सकें हम | ||
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विस्तारों के चक्रवर्तीत्व से | विस्तारों के चक्रवर्तीत्व से | ||
पंक्ति 21: | पंक्ति 21: | ||
उूदी हवा शरीर से लगती है | उूदी हवा शरीर से लगती है | ||
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तो सिहरते हुए याद आते हैं पहाड | तो सिहरते हुए याद आते हैं पहाड | ||
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यादों का भी सानी नहीं | यादों का भी सानी नहीं | ||
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छूते ही बरोबर कर देती हैं ये विषमताओं को | छूते ही बरोबर कर देती हैं ये विषमताओं को | ||
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अब इसमें क्या तुक कि धुआं छोडती रेल को देख | अब इसमें क्या तुक कि धुआं छोडती रेल को देख | ||
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एक लडकी की याद आती है | एक लडकी की याद आती है | ||
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यादों में पहाड का वजन | यादों में पहाड का वजन | ||
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फूल से ज्यादा नहीं होता | फूल से ज्यादा नहीं होता | ||
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ना ही फूलों से कम खूबसूरत लगते हैं पहाड | ना ही फूलों से कम खूबसूरत लगते हैं पहाड | ||
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यादों में संभव होता है | यादों में संभव होता है | ||
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कि हम चूम सकें पहाडों को | कि हम चूम सकें पहाडों को | ||
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जैसे उन्हें चूमता है आकाश | जैसे उन्हें चूमता है आकाश | ||
पंक्ति 48: | पंक्ति 37: | ||
नीचे उतर आया हूं पहाडों से | नीचे उतर आया हूं पहाडों से | ||
− | |||
सोचता कि अभी चोटी पर था | सोचता कि अभी चोटी पर था | ||
− | + | चोटी को देखता हूं तो लगता है | |
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− | + | ||
कि क्या सचमुच वहां था | कि क्या सचमुच वहां था | ||
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उूपर शून्य में कोई कैसे लिखे | उूपर शून्य में कोई कैसे लिखे | ||
− | |||
कोई नाम | कोई नाम | ||
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पांव तले की चट्टान भी | पांव तले की चट्टान भी | ||
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नाम स्वीकारेगी क्या | नाम स्वीकारेगी क्या | ||
तब तोडता चलूं पत्थर कुछ | तब तोडता चलूं पत्थर कुछ | ||
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टुकडे चमकदार याद में | टुकडे चमकदार याद में | ||
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पर क्या पत्थर पहाड होते हैं | पर क्या पत्थर पहाड होते हैं | ||
पंक्ति 74: | पंक्ति 54: | ||
मारे खुशी के हांप रहा हूं | मारे खुशी के हांप रहा हूं | ||
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चोटी चढी है पहाड की | चोटी चढी है पहाड की | ||
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अब उतरना है नीचे | अब उतरना है नीचे | ||
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आश्रय नहीं दे पातीं | आश्रय नहीं दे पातीं | ||
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तो बनती क्यों हैं चोटियां | तो बनती क्यों हैं चोटियां | ||
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वहां बादल है हवा है सूरज है | वहां बादल है हवा है सूरज है | ||
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पर जडें क्यों नहीं हैं | पर जडें क्यों नहीं हैं | ||
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होता है यहीं पत्थर हो जाएं | होता है यहीं पत्थर हो जाएं | ||
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पर लगेंगे करोड बरस | पर लगेंगे करोड बरस | ||
पंक्ति 97: | पंक्ति 68: | ||
पहाडों क्या तुम्हारे हाथ नहीं होते | पहाडों क्या तुम्हारे हाथ नहीं होते | ||
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इच्छाएं नहीं होतीं चोटी से ढकेलने की | इच्छाएं नहीं होतीं चोटी से ढकेलने की | ||
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बलाते हो दूर से सिर भी चढाते हो | बलाते हो दूर से सिर भी चढाते हो | ||
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फिर उतरने क्यों नहीं कहते | फिर उतरने क्यों नहीं कहते | ||
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पछताते हम ही उतरते हैं | पछताते हम ही उतरते हैं | ||
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कि उतरे क्यों | कि उतरे क्यों | ||
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उतारे जाने का डर तो नहीं | उतारे जाने का डर तो नहीं | ||
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नहीं ऐसा नहीं करोगे | नहीं ऐसा नहीं करोगे | ||
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यही सोचते खुश उदास होते | यही सोचते खुश उदास होते | ||
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हम उतर आते हैं पर उतर पाते हैं | हम उतर आते हैं पर उतर पाते हैं | ||
पंक्ति 122: | पंक्ति 84: | ||
हो तो पहाड | हो तो पहाड | ||
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पर कैसी सफाई से | पर कैसी सफाई से | ||
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पैठ जाते हो स्मृतियों में हमारी | पैठ जाते हो स्मृतियों में हमारी | ||
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और भी गहरी काली हरी चट्टानें बनकर | और भी गहरी काली हरी चट्टानें बनकर | ||
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और सोते गर्म ठंडे जल के | और सोते गर्म ठंडे जल के | ||
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इतने हल्के हो जाते हो | इतने हल्के हो जाते हो | ||
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कि लगाते हो दौड | कि लगाते हो दौड | ||
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भूल जाते हो | भूल जाते हो | ||
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कि धुंध सी ये स्मृतियां हैं हमारी | कि धुंध सी ये स्मृतियां हैं हमारी | ||
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हवाएं नहीं कि चीरे चले जाओ | हवाएं नहीं कि चीरे चले जाओ | ||
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खुद छलनी हो जाएंगी ये | खुद छलनी हो जाएंगी ये | ||
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पर अगोरेंगी तुम्हें | पर अगोरेंगी तुम्हें | ||
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पर कैसे बेरहम हो | पर कैसे बेरहम हो | ||
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अकेला पाते ही | अकेला पाते ही | ||
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होने लगते हो सवार छाती पर। | होने लगते हो सवार छाती पर। | ||
13:34, 30 सितम्बर 2014 के समय का अवतरण
1
जीवन के विस्तारों में
अक्सर याद आते हैं पहाड
कि चाहे वे थकाते बहुत हैं
पर जल्द ही दे देते हैं कोई चोटी
जहां खडे हो
क्षण भर को
तटस्थ हो सकें हम
विस्तारों के चक्रवर्तीत्व से
2
उूदी हवा शरीर से लगती है
तो सिहरते हुए याद आते हैं पहाड
यादों का भी सानी नहीं
छूते ही बरोबर कर देती हैं ये विषमताओं को
अब इसमें क्या तुक कि धुआं छोडती रेल को देख
एक लडकी की याद आती है
यादों में पहाड का वजन
फूल से ज्यादा नहीं होता
ना ही फूलों से कम खूबसूरत लगते हैं पहाड
यादों में संभव होता है
कि हम चूम सकें पहाडों को
जैसे उन्हें चूमता है आकाश
3
नीचे उतर आया हूं पहाडों से
सोचता कि अभी चोटी पर था
चोटी को देखता हूं तो लगता है
कि क्या सचमुच वहां था
उूपर शून्य में कोई कैसे लिखे
कोई नाम
पांव तले की चट्टान भी
नाम स्वीकारेगी क्या
तब तोडता चलूं पत्थर कुछ
टुकडे चमकदार याद में
पर क्या पत्थर पहाड होते हैं
4
मारे खुशी के हांप रहा हूं
चोटी चढी है पहाड की
अब उतरना है नीचे
आश्रय नहीं दे पातीं
तो बनती क्यों हैं चोटियां
वहां बादल है हवा है सूरज है
पर जडें क्यों नहीं हैं
होता है यहीं पत्थर हो जाएं
पर लगेंगे करोड बरस
5
पहाडों क्या तुम्हारे हाथ नहीं होते
इच्छाएं नहीं होतीं चोटी से ढकेलने की
बलाते हो दूर से सिर भी चढाते हो
फिर उतरने क्यों नहीं कहते
पछताते हम ही उतरते हैं
कि उतरे क्यों
उतारे जाने का डर तो नहीं
नहीं ऐसा नहीं करोगे
यही सोचते खुश उदास होते
हम उतर आते हैं पर उतर पाते हैं
6
हो तो पहाड
पर कैसी सफाई से
पैठ जाते हो स्मृतियों में हमारी
और भी गहरी काली हरी चट्टानें बनकर
और सोते गर्म ठंडे जल के
इतने हल्के हो जाते हो
कि लगाते हो दौड
भूल जाते हो
कि धुंध सी ये स्मृतियां हैं हमारी
हवाएं नहीं कि चीरे चले जाओ
खुद छलनी हो जाएंगी ये
पर अगोरेंगी तुम्हें
पर कैसे बेरहम हो
अकेला पाते ही
होने लगते हो सवार छाती पर।
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