भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"जागो रे मज़दूर किसान / कांतिमोहन 'सोज़'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कांतिमोहन 'सोज़' |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=कांतिमोहन 'सोज़' | |रचनाकार=कांतिमोहन 'सोज़' | ||
|अनुवादक= | |अनुवादक= | ||
− | |संग्रह= | + | |संग्रह=क़दम मिलाके चलो / कांतिमोहन 'सोज़' |
}} | }} | ||
{{KKCatGeet}} | {{KKCatGeet}} |
00:30, 18 नवम्बर 2014 के समय का अवतरण
जागो रे मज़दूर किसान
रात गई अब हुआ विहान
रात गई रे साथी !
किरनों की आहट पाकर कलियों ने आँखें खोलीं
ताक़त नई हवा से पाकर गूंगी लहरें बोलीं
गुन-गुन-गुन सब ओर गूँजता परिवर्तन का गान
रात गई रे साथी !
चलो साथियों चलो कि अपनी मंज़िल बहुत कड़ी है
उधर विजय ताज़ा फूलों की माला लिए खड़ी है
चलो साथियो तुम्हें जगाना पूरा हिन्दुस्तान
रात गई रे साथी !
खोने को हथकड़ियाँ पाने को है दुनिया सारी
चलो साथियो बढ़ो कि होगी अन्तिम विजय हमारी
सर पर कफ़न हथेली पर रख लें अब अपनी जान
रात गई रे साथी !