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"ज़िन्दगी / रफ़ीक शादानी" के अवतरणों में अंतर
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10:44, 1 दिसम्बर 2014 के समय का अवतरण
कबहूँ ठण्डी तौ कबहूँ गरम ज़िन्दगी
एक गँजेड़ी कै जइसे चिलम ज़िन्दगी।
का कही ऐसा पावा है हम ज़िन्दगी
बिन सियाही के जइसे कलम ज़िन्दगी।
दिल के चक्कर मा अस छीछालेदर भई
हाय सत्यम सिवम सुन्दरम ज़िन्दगी।
हम ई जानेन कि अब दुख से फुरसत मिली
दुह घड़ी हँसि के भै बेधरम ज़िन्दगी।