"क्षणिकाएँ / ममता व्यास" के अवतरणों में अंतर
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> छूना ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार= | + | |रचनाकार=ममता व्यास |
|अनुवादक= | |अनुवादक= | ||
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
पंक्ति 62: | पंक्ति 62: | ||
तो मैं बेपढ़ी रहूँ? | तो मैं बेपढ़ी रहूँ? | ||
पर कब तक? | पर कब तक? | ||
− | |||
</poem> | </poem> |
16:54, 12 जनवरी 2015 के समय का अवतरण
छूना और छू लेने में
उतना ही फर्क है
जितना
जीना और जी लेने में
XXX
मन भर प्रेम मांगा था
तुम तो तराजू ले आये...
XXX
अकेलापन
कोख से शुरू होता है
और
कब्र तक चलता है साथ
XXX
जो जीवन भर भयभीत रहे प्रेम से
उन्होंने खूब लिखीं प्रेम कविताएं
जो समंदर की गहराई से डरते थे
उन्होंने गहराई पर की गंभीर चर्चाएं
XXX
मेरी आत्मीयता
तुम्हारा ध्यान भंग कर देती है?
अब से तुम अपना ध्यान संभालो
मैं अपनी आत्मीयता...
XXX
तार तो तुम्हारी गिटार के टूटे थे
मैं व्यर्थ में ही कोसती रही
अपनी उँगलियों को...
XXX
उसने कहा --
कि बात करना, प्रेम करना नहीं है।
प्रेम करना, बात करना नहीं है।
वो बोली, ठीक है अब ये बताओ
अबसे से प्रेम करूँ या बात?
चलो ऐसा करते है अबसे सिर्फ प्रेम करते हैं
आज से बात बंद ...
XXX
मैं बेहोशी में लिखती हूँ तुम्हे
तुम होश में ही पढना मुझे
ओह, तुम्हे होश नहीं आया अबतक
तो मैं बेपढ़ी रहूँ?
पर कब तक?