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"जुड़ो जमीं से कहते थे जो वो ख़ुद नभ के दास हो गए / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर
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− | जुड़ो ज़मीं से कहते थे जो वो ख़ुद नभ के दास | + | जुड़ो ज़मीं से कहते थे जो वो ख़ुद नभ के दास बने हैं। |
− | आम आदमी की | + | आम आदमी के हित की झूटी फ़िक्र जिन्हें थी, ख़ास बने हैं। |
सबसे ऊँचे पेड़ों से भी ऊँचे होकर बाँस महोदय, | सबसे ऊँचे पेड़ों से भी ऊँचे होकर बाँस महोदय, | ||
− | आरक्षण पाने की ख़ातिर सबसे लम्बी घास | + | आरक्षण पाने की ख़ातिर सबसे लम्बी घास बने हैं। |
− | तन में मन में | + | तन में मन में पड़ी दरारें, टपक रहा आँखों से पानी, |
− | जब से तू निकली दिल से हम सरकारी आवास | + | जब से तू निकली दिल से हम सरकारी आवास बने हैं। |
बात शुरू की थी अच्छे से सबने ख़ूब सराहा भी था, | बात शुरू की थी अच्छे से सबने ख़ूब सराहा भी था, | ||
− | लेकिन सबकुछ कह देने के चक्कर में बकवास | + | लेकिन सबकुछ कह देने के चक्कर में बकवास बने हैं। |
ऐसे डूबे आभासी दुनिया में हम सब कुछ मत पूछो, | ऐसे डूबे आभासी दुनिया में हम सब कुछ मत पूछो, | ||
− | रिश्ते, नाते | + | रिश्ते, नाते, संगी-साथी सबके सब आभास बने हैं। |
− | शब्द पुराने, भाव पुराने रहे | + | शब्द पुराने, भाव पुराने रहे पिरोते हर मिसरे में, |
− | + | क़ायम रहे रवायत इस चक्कर में हम इतिहास बने हैं। | |
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10:10, 26 फ़रवरी 2024 के समय का अवतरण
जुड़ो ज़मीं से कहते थे जो वो ख़ुद नभ के दास बने हैं।
आम आदमी के हित की झूटी फ़िक्र जिन्हें थी, ख़ास बने हैं।
सबसे ऊँचे पेड़ों से भी ऊँचे होकर बाँस महोदय,
आरक्षण पाने की ख़ातिर सबसे लम्बी घास बने हैं।
तन में मन में पड़ी दरारें, टपक रहा आँखों से पानी,
जब से तू निकली दिल से हम सरकारी आवास बने हैं।
बात शुरू की थी अच्छे से सबने ख़ूब सराहा भी था,
लेकिन सबकुछ कह देने के चक्कर में बकवास बने हैं।
ऐसे डूबे आभासी दुनिया में हम सब कुछ मत पूछो,
रिश्ते, नाते, संगी-साथी सबके सब आभास बने हैं।
शब्द पुराने, भाव पुराने रहे पिरोते हर मिसरे में,
क़ायम रहे रवायत इस चक्कर में हम इतिहास बने हैं।