भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सूरज दादा / लाला जगदलपुरी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लाला जगदल पुरी |अनुवादक= |संग्रह= }}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 14: | पंक्ति 14: | ||
रखते सबको तुम्हीं निरोग, | रखते सबको तुम्हीं निरोग, | ||
अच्छे लगते हमको तुम। | अच्छे लगते हमको तुम। | ||
− | सूरज दादा, चमको | + | सूरज दादा, चमको तुम। |
आसमान में रहते हो, | आसमान में रहते हो, |
23:51, 8 मई 2015 का अवतरण
सूरज दादा, चमको तुम।
नया सवेरा लाते रोज,
उजियाला फैलाते रोज,
जहाँ कहीं भी रहते लोग,
रखते सबको तुम्हीं निरोग,
अच्छे लगते हमको तुम।
सूरज दादा, चमको तुम।
आसमान में रहते हो,
सबकी बाँहें गहते हो,
रोज समय पर आते हो,
रोज समय पर जाते हो,
रोज भगाते तम को तुम।
सूरज दादा, चमको तुम।
परहित में तप करते हो,
नहीं किसी से डरते हो,
तुम स्वभाव से बड़े प्रखर,
कहती गरमी की दोपहर,
नहला देते श्रम को तुम।
सूरज दादा, चमको तुम।