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"रेगिस्तान की रात है / दीप्ति नवल" के अवतरणों में अंतर
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मिटते जाते हैं निशां | मिटते जाते हैं निशां | ||
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ना कोई हमसफ़र | ना कोई हमसफ़र | ||
− | रेत के सीने में | + | रेत के सीने में दफ़्न हैं |
ख़्वाबों की नर्म साँसें | ख़्वाबों की नर्म साँसें | ||
यह घुटी-घुटी सी नर्म साँसें ख़्वाबों की | यह घुटी-घुटी सी नर्म साँसें ख़्वाबों की | ||
थके-थके दो क़दमों का सहारा लिए | थके-थके दो क़दमों का सहारा लिए | ||
ढूँढ़ती फिरती हैं | ढूँढ़ती फिरती हैं | ||
− | सूखे बयाबानों में | + | सूखे हुए बयाबानों में |
शायद कहीं कोई साहिल मिल जाए | शायद कहीं कोई साहिल मिल जाए | ||
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इन भटकते क़दमों से | इन भटकते क़दमों से | ||
इन उखड़ती सांसों से | इन उखड़ती सांसों से | ||
− | कोई तो कह दो ! | + | कोई तो कह दो! |
− | भला रेत के सीने में कहीं साहिल होते | + | भला रेत के सीने में कहीं साहिल होते हैं। |
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13:28, 30 अगस्त 2019 के समय का अवतरण
रेगिस्तान की रात है
और आँधियाँ सी
बनते जाते हैं निशां
मिटते जाते हैं निशां
दो अकेले से क़दम
ना कोई रहनुमां
ना कोई हमसफ़र
रेत के सीने में दफ़्न हैं
ख़्वाबों की नर्म साँसें
यह घुटी-घुटी सी नर्म साँसें ख़्वाबों की
थके-थके दो क़दमों का सहारा लिए
ढूँढ़ती फिरती हैं
सूखे हुए बयाबानों में
शायद कहीं कोई साहिल मिल जाए
रात के आख़री पहर से लिपटे इन ख़्वाबों से
इन भटकते क़दमों से
इन उखड़ती सांसों से
कोई तो कह दो!
भला रेत के सीने में कहीं साहिल होते हैं।