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"कुछ तो होगा / पृथ्वी पाल रैणा" के अवतरणों में अंतर
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− | + | क्या हुआ होगा यहाँ कि रंगतें निखरी नहीं | |
− | + | उजड़ जाने के लिए तो हम फ़सल बोते नहीं। | |
− | + | किश्तियाँ मझधार में यों ही पलट जाती रहेंगी | |
− | + | नाविकों के हाथ जो पतवार पर होते नहीं। | |
− | + | हो भले बिफरी फिज़ां या तल्ख़ियां हालात में | |
− | + | सध गए जो फिर तवाज़ुन वे कभी खोते नहीं। | |
− | + | जब मुहब्बत ही नहीं तो अज़ल से कैसा गिला | |
− | + | गुजऱने पर गैऱ के तो बेवजह रोते नहीं। | |
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01:31, 5 अक्टूबर 2015 के समय का अवतरण
कुछ तो होगा जिसके कारण पेश हैं दुश्वारियाँ
बेवजह तो ज़िन्दगी में पेचोख़म होते नहीं।
क्या हुआ होगा यहाँ कि रंगतें निखरी नहीं
उजड़ जाने के लिए तो हम फ़सल बोते नहीं।
किश्तियाँ मझधार में यों ही पलट जाती रहेंगी
नाविकों के हाथ जो पतवार पर होते नहीं।
हो भले बिफरी फिज़ां या तल्ख़ियां हालात में
सध गए जो फिर तवाज़ुन वे कभी खोते नहीं।
जब मुहब्बत ही नहीं तो अज़ल से कैसा गिला
गुजऱने पर गैऱ के तो बेवजह रोते नहीं।