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आरजू / रसूल हम्ज़ातव
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18:09, 5 अक्टूबर 2015
<poem>
मुझे मोजज़ों<ref>करामातों</ref> पे यक़ीं नहीं मगर आरज़ू है कि जब कज़ा<ref>मौत</ref>
मुझे बज़्मे-दहर<ref>दुनिया
की महफ़िल
</ref> से ले चले
तो फिर एक बार ये अज़न<ref>इजाज़त</ref> दे
कि लहद<ref>क़ब्र</ref> से लौट के आ सकूँ
अनिल जनविजय
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