"अंधेरे में / भाग 1 / गजानन माधव मुक्तिबोध" के अवतरणों में अंतर
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
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और मेरे हृदय की धक्-धक्<br> | और मेरे हृदय की धक्-धक्<br> | ||
पूछती है--वह कौन<br> | पूछती है--वह कौन<br> | ||
− | सुनाई जो देता, पर नहीं देता दिखाई | + | सुनाई जो देता, पर नहीं देता दिखाई !<br> |
इतने में अकस्मात गिरते हैं भीतर से<br> | इतने में अकस्मात गिरते हैं भीतर से<br> | ||
फूले हुए पलस्तर,<br> | फूले हुए पलस्तर,<br> | ||
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भव्य ललाट है,<br> | भव्य ललाट है,<br> | ||
दृढ़ हनु<br> | दृढ़ हनु<br> | ||
− | कोई अनजानी अन-पहचानी | + | कोई अनजानी अन-पहचानी आकृति।<br> |
कौन वह दिखाई जो देता, पर<br> | कौन वह दिखाई जो देता, पर<br> | ||
− | नहीं जाना जाता है<br> | + | नहीं जाना जाता है !!<br> |
− | कौन मनु<br><br> | + | कौन मनु ?<br><br> |
बाहर शहर के, पहाड़ी के उस पार, तालाब...<br> | बाहर शहर के, पहाड़ी के उस पार, तालाब...<br> | ||
अँधेरा सब ओर,<br> | अँधेरा सब ओर,<br> | ||
निस्तब्ध जल,<br> | निस्तब्ध जल,<br> | ||
− | पर, भीतर से | + | पर, भीतर से उभरती है सहसा<br> |
सलिल के तम-श्याम शीशे में कोई श्वेत आकृति<br> | सलिल के तम-श्याम शीशे में कोई श्वेत आकृति<br> | ||
कुहरीला कोई बड़ा चेहरा फैल जाता है<br> | कुहरीला कोई बड़ा चेहरा फैल जाता है<br> | ||
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नहीं वह समझ में आता।<br><br> | नहीं वह समझ में आता।<br><br> | ||
− | अरे ! अरे !<br> | + | अरे ! अरे !!<br> |
तालाब के आस-पास अँधेरे में वन-वृक्ष<br> | तालाब के आस-पास अँधेरे में वन-वृक्ष<br> | ||
चमक-चमक उठते हैं हरे-हरे अचानक<br> | चमक-चमक उठते हैं हरे-हरे अचानक<br> | ||
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वृक्षों के अँधेरे में छिपी हुई किसी एक <br> | वृक्षों के अँधेरे में छिपी हुई किसी एक <br> | ||
तिलस्मी खोह का शिला-द्वार<br> | तिलस्मी खोह का शिला-द्वार<br> | ||
− | खुलता है | + | खुलता है धड़ से<br> |
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घुसती है लाल-लाल मशाल अजीब-सी<br> | घुसती है लाल-लाल मशाल अजीब-सी<br> | ||
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मौत की सज़ा दी !<br><br> | मौत की सज़ा दी !<br><br> | ||
− | किसी काले डैश की घनी काली पट्टी | + | किसी काले डैश की घनी काली पट्टी ही<br> |
आँखों में बँध गयी,<br> | आँखों में बँध गयी,<br> | ||
+ | किसी खड़ी पाई की सूली पर मैं टाँग दिया गया,<br> | ||
किसी शून्य बिन्दु के अँधियारे खड्डे में<br> | किसी शून्य बिन्दु के अँधियारे खड्डे में<br> | ||
::गिरा दिया गया मैं<br> | ::गिरा दिया गया मैं<br> | ||
::अचेतन स्थिति में ! | ::अचेतन स्थिति में ! |
21:16, 3 फ़रवरी 2008 का अवतरण
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ज़िन्दगी के...
- कमरों में अँधेरे
- लगाता है चक्कर
- कोई एक लगातार;
- कमरों में अँधेरे
आवाज़ पैरों की देती है सुनाई
बार-बार....बार-बार,
वह नहीं दीखता... नहीं ही दीखता,
किन्तु वह रहा घूम
तिलस्मी खोह में ग़िरफ्तार कोई एक,
भीत-पार आती हुई पास से,
गहन रहस्यमय अन्धकार ध्वनि-सा
- अस्तित्व जनाता
- अनिवार कोई एक,
- अस्तित्व जनाता
और मेरे हृदय की धक्-धक्
पूछती है--वह कौन
सुनाई जो देता, पर नहीं देता दिखाई !
इतने में अकस्मात गिरते हैं भीतर से
फूले हुए पलस्तर,
खिरती है चूने-भरी रेत
खिसकती हैं पपड़ियाँ इस तरह--
ख़ुद-ब-ख़ुद
कोई बड़ा चेहरा बन जाता है,
स्वयमपि
मुख बन जाता है दिवाल पर,
नुकीली नाक और
भव्य ललाट है,
दृढ़ हनु
कोई अनजानी अन-पहचानी आकृति।
कौन वह दिखाई जो देता, पर
नहीं जाना जाता है !!
कौन मनु ?
बाहर शहर के, पहाड़ी के उस पार, तालाब...
अँधेरा सब ओर,
निस्तब्ध जल,
पर, भीतर से उभरती है सहसा
सलिल के तम-श्याम शीशे में कोई श्वेत आकृति
कुहरीला कोई बड़ा चेहरा फैल जाता है
और मुसकाता है,
पहचान बताता है,
किन्तु, मैं हतप्रभ,
नहीं वह समझ में आता।
अरे ! अरे !!
तालाब के आस-पास अँधेरे में वन-वृक्ष
चमक-चमक उठते हैं हरे-हरे अचानक
वृक्षों के शीशे पर नाच-नाच उठती हैं बिजलियाँ,
शाखाएँ, डालियाँ झूमकर झपटकर
चीख़, एक दूसरे पर पटकती हैं सिर कि अकस्मात्--
वृक्षों के अँधेरे में छिपी हुई किसी एक
तिलस्मी खोह का शिला-द्वार
खुलता है धड़ से
........................
घुसती है लाल-लाल मशाल अजीब-सी
अन्तराल-विवर के तम में
लाल-लाल कुहरा,
कुहरे में, सामने, रक्तालोक-स्नात पुरुष एक,
रहस्य साक्षात् !!
तेजो प्रभामय उसका ललाट देख
मेरे अंग-अंग में अजीब एक थरथर
गौरवर्ण, दीप्त-दृग, सौम्य-मुख
सम्भावित स्नेह-सा प्रिय-रूप देखकर
विलक्षण शंका,
भव्य आजानुभुज देखते ही साक्षात्
गहन एक संदेह।
वह रहस्यमय व्यक्ति
अब तक न पायी गयी मेरी अभिव्यक्ति है
पूर्ण अवस्था वह
निज-सम्भावनाओं, निहित प्रभावों, प्रतिमाओं की,
मेरे परिपूर्ण का आविर्भाव,
हृदय में रिस रहे ज्ञान का तनाव वह,
आत्मा की प्रतिमा।
प्रश्न थे गम्भीर, शायद ख़तरनाक भी,
इसी लिए बाहर के गुंजान
जंगलों से आती हुई हवा ने
फूँक मार एकाएक मशाल ही बुझा दी-
कि मुझको यों अँधेरे में पकड़कर
मौत की सज़ा दी !
किसी काले डैश की घनी काली पट्टी ही
आँखों में बँध गयी,
किसी खड़ी पाई की सूली पर मैं टाँग दिया गया,
किसी शून्य बिन्दु के अँधियारे खड्डे में
- गिरा दिया गया मैं
- अचेतन स्थिति में !
- गिरा दिया गया मैं